बहार आते चमन हँसेगा

अवधेश कुमार ‘आशुतोष’ खगड़िया (बिहार) **************************************************************************** (रचना शिल्प: १२१ १२१ १२१ २२) बहार आते चमन हँसेगा, कली-कली से सुमन खिलेगाl चढ़ा क्षितिज पर लिए चमक जो, भरी दुपहरी भुवन दहेगाl जला दिया जो जनक दुलारी, उसे पिता कब सहन करेगाl करे पढ़ाई लगन लगाकर, उसे समझ लो गगन चढ़ेगाl अगर ये जिह्वा रहे न वश … Read more

ढल रहा हूँ…

मोहित जागेटिया भीलवाड़ा(राजस्थान) ***************************************************************************  न मंजिल न रास्ते जाने किस और चल रहा हूँ। ख्वाब अधूरे ही ख्वाब से आज निकल रहा हूँ। आशायें,विश्वास हैं कैसे जीवन जी रहा, उस भगवान की आस्था के बल पर पल रहा हूँ। दिल भी मेरा तड़प रहा सफर अब कहाँ पर है, उस मोम की तरह मैं मन … Read more

चलो चलते हैं सरहद पर

अब्दुल हमीद इदरीसी ‘हमीद कानपुरी’ कानपुर(उत्तर प्रदेश) ***************************************************** उन्हें लज्जा नहीं आती,उन्हें लज्जा न आने दो। हमें सरहद पे जाकर के ज़रा सर काट लाने दो। शहादत ये जवानों की नहीं हो रायगाँ हरगिज़, किया इस काम को जिसने उसे जग से मिटाने दो। बुजुर्गों ने लहू देकर बचाया था जिसे कल तक, पसीना अब … Read more

बात समझने की है..

इंदु भूषण बाली ‘परवाज़ मनावरी’ ज्यौड़ियां(जम्मू कश्मीर) ******************************************************** नजर से नजर मिलाकर बात कर, झूठ ही तो टिका है नाहक ना डर। बात समझने की है ऐ मूर्ख मानव, अर्थहीन सृष्टि है ना भटक दर-दर। यहां तो खाली हाथ आते हैं समस्त, जाते भी यहां से खाली और बदतर। मानवता के नाम पर चल रहे … Read more

चाँद को जलाते हो

सलिल सरोज नौलागढ़ (बिहार) ******************************************************************** शाम ढले तुम छत पे क्यूँ आते हो, मुझे मालूम है चाँद को जलाते हो। तुमसे ही नहीं रौशन ये जहाँ सारा, मुस्कुराकर तुम उसे यह बताते हो। होंगे सितारे तुम्हारे हुस्न पर लट्टू, गिरा के दुपट्टा ये गुमाँ भी भुलाते हो। हुई पुरानी तुम्हारी अदाओं की तारीफें, रोककर सबकी … Read more

तो क्या करूँ

निर्मल कुमार शर्मा  ‘निर्मल’ जयपुर (राजस्थान) ***************************************************** ये फ़ितरत में है मेरी,कि,अयाँ करता बयाँ हूँ मैं, अनानीयत,इसे समझे कोई,तो क्या करूँ फिर मैं। गालिब नहीं,ग़ाज़ी नहीं,ना गैर-मामूली हूँ मैं, इंसां हूँ,ना समझे कोई,तो क्या करूँ फिर मैं। करूँ पुरजोर और पुरजोश,बातें हक़ की सबके मैं, फ़क़त लस्सान,गर,समझे कोई,तो क्या करूँ फिर मैं। राहे-हक़ में ह़िफ़्ज़े मरातिब,रखता … Read more

मैं पंछी हूँ

लालचन्द्र यादव आम्बेडकर नगर(उत्तर प्रदेश) *********************************************************************** विश्व धरा दिवस स्पर्धा विशेष…………… मैं पंछी हूँ,मैं जंगल की रानी हूँ, पेड़,लताएं,कुंजों की दीवानी हूँ। तुम दरख़्त को काट-काट ले जाते हो, तेरे ही कदमों से मिटी कहानी हूँ। अपना रोटी,कपड़ा तुमको याद रहा। मैं बेघर फिरती जैसे दीवानी हूँ। पहले मेरा घर होता था,कुंजों में, आज नहीं,मैं … Read more

चुनावी जाल

पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम’ बसखारो(झारखंड) *************************************************************************** रचना शिल्प:काफ़िया-आज़,रदीफ़- मैं लिख दूँ सियासी खेल के हर शख्स का राज़ मैं लिख दूँ, बदलते देश के हालात पर अल्फ़ाज़ मैं लिख दूँ। कभी आया नहीं बरसों, कभी ना हाल ही पूछा, अभी पैरों पे गिरने का, नया अंदाज़ मैं लिख दूँ। सियासत खेल सत्ता का, यहाँ कोई … Read more

झूठी दुनिया

इंदु भूषण बाली ‘परवाज़ मनावरी’ ज्यौड़ियां(जम्मू कश्मीर) ******************************************************** चुनौतियां बन गया तुम्हारा तिरस्कार, झूठी दुनिया और अपना घर परिवार। देखो भौंक रही हैं मेरी समस्त गज़लें, और अक्षर बन गए तेज धार तलवार। मुझे शिक्षा दे रहे शराबी और जुआरी, एवं चुपचाप तमाशा देख रही सरकार। लोकतंत्र में मात्र मतदाता पूजे जाते हैं, जिस कारण … Read more

सहज बुनियाद हिलती है

अवधेश कुमार ‘आशुतोष’ खगड़िया (बिहार) **************************************************************************** (रचना शिल्प:१२२२ १२२२ १२२२ १२२२) कठिन श्रम से सफलता शीघ्र सबको हाथ लगती है, लगाओ जोर दम भरके,सहज बुनियाद हिलती है। कमाओ लाख धन चाहे,महल मोटर बनाओ तुम, न दे ये काम, जीवन की कभी जब शाम ढलती है। निकट जब बाल बच्चे हों,मजा तब नौकरी में है, अगर … Read more