मानव सेवा धर्म हमारा
डॉ.एन.के. सेठीबांदीकुई (राजस्थान) ********************************************* सबमें ही इक तत्व समाया,ना कोई है उससे न्यारा।यही सभ्यता संस्कृति अपनीमानव सेवा धर्म हमारा॥ चन्द पलों का जीवन है ये,सुख-दु:ख का है आना-जाना।परिवर्तन की भाग-दौड़ में,बुनते जाते ताना-बाना॥सदा-सदा ही रहे न कोई,नाशवान है ये जग सारा।यही सभ्यता संस्कृति अपनी,मानव सेवा धर्म हमारा…॥ ये मेरा ये तेरा जग में,करते-करते जीवन बीता।पाया … Read more