मेंहदी

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)******************************************************************** (रचनाशिल्प:१६-१४ पदांत २२२)लगे मेंहदी है हाथों में,साजन के घर जाने को।खुशियों से आच्छादित आँगन,स्नेह सुधा बरसाने को॥ मन आह्लादित होता जब-जब,पिय की याद सताती है।आँखों में सपनों की माला,मुझको बहुत रुलाती है॥पी लेती हूँ आँसू अपने,खुद को ही बहलाने को,लगे मेंहदी हैं हाथों में… सावन की यह मधुरिम बेला,हिय में … Read more

मेरा सुंदर गाँव निराला

आशा आजादकोरबा (छत्तीसगढ़) ********************************************************************** मेरा सुंदर गाँव निराला। हर्षित मन को करने वाला।शुद्ध हवा जो निसदिन आये। तन-मन को सब शुद्ध बनाये॥ पंक्षी मधुरिम गीत सुनाते। चीं-चीं करके हृदय लुभाते।निर्मल वातावरण लुभाता। सेहत सबके मन को भाता॥ गोबर के कंडे से जानो। धुँआ मारता मच्छर मानो।घर-आँगन है मन को भाता। गोबर से जब है लिप … Read more

आशाओं के पंख

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)******************************************************************** (रचना शिल्प:१६/१४) मन पंछी का रूप बनाकर,चूँ-चूँ-चूँ गाना गाऊँ।आशाओं के पंख लगाकर,आसमान उड़ता जाऊँ॥ उड़-उड़ सारे ब्रम्हांडों की,सैर सभी कर आऊँगा।मन की इच्छा पूरी होगी,तन हर्षित कर जाऊँगा॥हरे-भरे इन बागों से मैं,कलियाँ सभी चुरा लाऊँ।आशाओं के पंख लगाकर… पास सभी मंजिल भी होंगी,पूरी होंगी इच्छाएँ।सपनों की मैं सैर करूँगा,नहीं रहेगी … Read more

बाबा बुला रहे हैं

महेन्द्र देवांगन ‘माटी’पंडरिया (कवर्धा )छत्तीसगढ़ ************************************************** आया सावन महिना भक्तों,जपो प्रेम से शिव का नाम।बाबा बुला रहे हैं देखो,काँवरिया को अपने धाम॥ रिमझिम-रिमझिम पानी बरसे,भक्त लगाये जय-जयकार।भक्तों की टोली हैं निकली,सुन ले बाबा आज पुकार॥रहे सुखी सब प्राणी अब तो,बने सभी के बिगड़े काम।बाबा बुला रहे हैं देखो,काँवरिया को अपने धाम॥ काँवरिया सब पैदल चलते,पड़ते हैं … Read more

विद्यालय जरूरी

अख्तर अली शाह `अनन्त`नीमच (मध्यप्रदेश) **************************************************************** जिंदगी संवारने को,विद्यालय जरूरी है,डिजिटल शिक्षा बीज,लोगों मत बोइये।खेलकूद राजनीति,संगठन कहाँ वहां,सर्वांगीण उन्नति से हाथ मत धोइयेllपाठशाला यज्ञशाला,भूल ना जाइये इसे,जिंदगी से आप कभी,ना विमुख होइये।गुरु चरणों में बैठ,शिष्य सच जान सके,मत ऐसे प्राप्त कोई,अवसर खोइयेll

भारत के सच्चे सेनानी

आशा आजादकोरबा (छत्तीसगढ़) ********************************************************************** भारत के सच्चे सेनानी,सबका मान बढ़ाते हैं,रण पर कुर्बानी से अपने,झण्डा वो फहराते हैं। हैं शहीद कितने भारत में,कितना रक्त बहाया है,हिंदुस्तान की शान-बान में,मर कर फर्ज निभाया है,साहस रखकर फर्ज निभाते,दुश्मन मार गिराते हैं,रण पर कुर्बानी से अपने,झण्डा वो फहराते हैं। घर पर बैठी घरवाली जो,अपना फर्ज निभाती है,बच्चे उनके … Read more

कजरी सब गाते हैं

बोधन राम निषाद ‘राज’ कबीरधाम (छत्तीसगढ़)******************************************************************** सावन सुन्दर मौसम आया।हर्षित मन सब है मुस्काया॥पेड़ों पर झूले हैं लगते।पिया मिलन को विरहिन सजते॥ लगती प्रेम झड़ी अँखियन में।खुशियाँ उमड़ रही सखियन में॥मिलकर कजरी सब गाते हैं।अद्भुत आनन्द सुख पाते हैं॥ पिया मिलन की आस जगी है।सावन में भी प्यास लगी है॥कोयल भी अमुवा मुस्काते।पीर हृदय में वही … Read more

वृक्ष लगाओ

डॉ.एन.के. सेठीबांदीकुई (राजस्थान) ********************************************************************** (रचना शिल्प:८+८+६=२२ चरणांत-१ १ २) वृक्ष लगाओ,हरी भरी हो,ये वसुधा।नीर बचाओ,निर्बाध बहे,ये सरिता॥चिड़िया बोले,डाली डाली,पिक चहके।लदे हुए हों,वृक्ष फूल फल,से लहके॥ होय नीर सरिता में निर्मल,पवन बहे।उड़े नील अम्बर में खग भय,हीन रहे॥प्रकृति सौंदर्य,सबका मन आकृष्ट करे।होय प्रदूषण,मुक्त धरा भी,सुख बिखरे॥ पेड़ों से ही,मिलते फल अरु,फूल हमे।हम रहे सभी,स्वस्थअरु शांत,इस मन … Read more

ज्ञान को बढ़ाएं सब

अख्तर अली शाह `अनन्त`नीमच (मध्यप्रदेश) **************************************************************** ज्ञान को बढ़ाएं सब,घर में ही बैठे-बैठे,ऐसी कोई राह मिल,बैठ के बनाइये।विद्यालय जाए बिना,पाठ पढ़-पढ़ कर,इम्तिहान पास कर,सबको दिखाइये॥आजकल मोबाइल,कम्प्यूटर का है युग,नेट चला जमाने की,जानकारी पाइये।कोर्स सभी तरह के,मोबाइल पर मिले, जिसको भी देखना हो,एप वो लगाइए॥

कर गुज़र जाना है

क्षितिज जैनजयपुर(राजस्थान)********************************************************** मनोवांछित सिद्धि किसको है,मिली कभी मनुहारों से ?जीवन संग्राम गया जीता,कब मन के सुकुमारों से ? आती हुई आपदा को जो, सीना ठोक दिखाते हैं,बनकर ओझल निर्भीक हुए,क्रूर जगत की खाते हैं। जिनके लिये खड़ी पग-पग पर,यातना बड़ी भारी हैं,परिस्थितियों का खेल यह है,निशदिन रहता जारी है। उनमें भी जो दीन भाव भर,संतप्त … Read more