महका था ऑंगन
रश्मि लहरलखनऊ (उत्तर प्रदेश)************************************************** चहक उठे थे पंछी घर के, तुलसी संग महका था ऑंगनबरहा, छठ्ठी और होली के, गीतों पर ठुमका था ऑंगन। घर छोटा, परिवार बड़ा था, खुश…
रश्मि लहरलखनऊ (उत्तर प्रदेश)************************************************** चहक उठे थे पंछी घर के, तुलसी संग महका था ऑंगनबरहा, छठ्ठी और होली के, गीतों पर ठुमका था ऑंगन। घर छोटा, परिवार बड़ा था, खुश…
दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)******************************************* मॉं-बाप के अहं में आज बच्चे पिसते हैं,दोनों के प्यार की जगह पर झिड़की सहते हैं। है अगर छोटा बच्चा मॉं के हिस्से आता…
बबीता प्रजापति झाँसी (उत्तरप्रदेश)****************************************** ये स्त्रियाँ,घर को सजाती हैंऔर खुद सँवरना भूल जाती हैं। परिवार को भरपेट खिलाती हैं,और खुद खाना भूल जाती हैं कोई होता भी तो नहीं पूछने वाला,क्या तुमने…
सरोजिनी चौधरीजबलपुर (मध्यप्रदेश)************************************** मैंने देखा एक स्वर्ण रथ,माँग रही थी जब भिक्षादेख उसे मैं विस्मित बोली,शायद मेरी हो अब रक्षा। चला आ रहा था वह जैसे,राजाओं का हो राजामैंने सोचा…
हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’बिलासपुर (छत्तीसगढ़)********************************************* वर्ष माह सप्ताह में, बीत रहे दिन ऐसे।देख रहे हों जीवन, नभ से प्रभु जैसे। जेठ अषाढ़ में होता, ताप धरा में जितना।सावन भादों में…
श्रीमती देवंती देवीधनबाद (झारखंड)******************************************* मधुर स्वर में गीत गाती है गौरैया,गीत सुनते उठ जाएंगे, दीदी- भैया। सुन कर रानी गौरैया की आवाज,शुरू करती है देवन्ती, गृह काज। गौरैया का शत्रु,…
ममता तिवारी ‘ममता’जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)******************************************** यूँ लजाती चली जा रही मानिनी,भोर की मधु किरण ज्यूँ कनक कामिनी। डाल कर मेघ घूँघट मचलती हुई,मुख छिपाती हुयी दमकती दामिनी। चल रही वो सरिता उछलती…
संजय वर्मा ‘दृष्टि’ मनावर(मध्यप्रदेश)**************************************** जीवन संघर्ष (मजदूर दिवस विशेष).... सब्जी बेचने वाली महिलाएँ,अपने सिर पर उठाए बोझामोहल्ले-मोहल्ले घूम करआवाज लगाती-"सब्जी ले लो।" कौन कहता है कि महिलाएँमजदूरी में कमजोर होती,पुरुष सुबह…
हरिहर सिंह चौहानइन्दौर (मध्यप्रदेश )************************************ पत्ता टूट गयाअपनी शाख से,अब क्या वह लहराएगाक्या फिर अपनी टहनियों परपहुंच पाएगा।पत्ता टूट गया… यही रंग जीवन का है,साँसें कब निकल जाएँजो फिर वापस…
डॉ. श्राबनी चक्रवर्तीबिलासपुर (छतीसगढ़)************************************************* शाम को छत पर,सैर करने के बहानेकभी तो मुलाकात होगी,कुछ न कुछ गुफ्तगू होगी। यही सोच कर रोज़,टहल लिया करते हैंखुले गगन में चंद्रमा और, जगमग…