बिन पैसों के…

संजय वर्मा ‘दृष्टि’ मनावर(मध्यप्रदेश)**************************************** रोशनी से जिंदगी... कठिनाईयों में,सोचने की शक्तिआर्थिक कमी से बढ़ जाती,संपन्न हो तो सोच की।फुरसत हो जाती गुम,अपनी क्षमता अपनी सोचबिन पैसों के हो जाती बोनीपैसे हो…

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गम भरा घूँट

श्रीमती देवंती देवीधनबाद (झारखंड)******************************************* हाय वृद्धावस्था तू कहाँ से आई, गम भरा घूँट पिलाया,छीन लेता है हँसी-खुशी तन मन, अन्त में बेड पकड़ाया। काश! ये पहेली जान पाती, बुढ़ापा रात-दिन…

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दोस्ती और रिश्ता

अमल श्रीवास्तव बिलासपुर(छत्तीसगढ़) *********************************** कौन स्वेच्छा से अपनों से,कभी भी दूर होता है ?स्वयं हालात से अपने,ही वो मजबूर होता है। हमें हरदम यही है सोचना,यह ही समझना है।हर एक रिश्ता…

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यहाँ लोकतंत्र हर कतरे में

गोपाल मोहन मिश्रदरभंगा (बिहार)***************************************** साठ बरस शाही परिवार,नित्य चलाता था सरकारअब जनमत जीत, उनको चित करना,एक गरीब, पिछड़े के बस में है…मगर, लोकतंत्र खतरे में है। 'हो भारत के टुकड़े…

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तुम ही तुम

तारा प्रजापत ‘प्रीत’रातानाड़ा(राजस्थान) ***************************************** माना कि तुमआज मेरे पास नहीं,पर मुझसेजुदा भी नहीं। रची-बसी होतुम ही तुम,मेरी रग-रग मेंकहाँ नहीं हो तुम ? देखो!मेरी आँखों में,तेरी ही तस्वीरनज़र आएगी। दिल कीहर…

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आईना बात बता जाता है

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’रावतसर(राजस्थान) ****************************************** कितना दिल का दर्द छुपाओ कभी सामने आ जाता है,निर्मल मन का यह आईना सारी बात बता जाता है। क्यों रिश्तो में पड़ी दरारें क्यों नाते…

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कैसे मिटे अभाव

बबीता प्रजापति ‘वाणी’झाँसी (उत्तरप्रदेश)****************************************** कहाँ गया प्रेम हृदय का,कहाँ गए वो भावह्रदय अब रिक्त हो चला,कैसे मिटे अभाव ? अब पीड़ा भी अन्तस की,मौन समाधि ले रहीकौन सुनेगा हरि सिवा,हृदय…

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राह ताकती साजन की

श्रीमती देवंती देवीधनबाद (झारखंड)******************************************* मैं बन के रह गई नई नवेली दुल्हन, पिया चले गए हैं परदेस,पैरों की महावर, हाथों की मेहन्दी लेकर बालम गए परदेस। 'देवन्ती' कैसे करेगी सिंगार,…

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एक शपथ…जिम्मेदारी

डॉ.अशोकपटना(बिहार)********************************** यह जिम्मेदारी और जवाबदेही,का एक अपूर्व दर्शन हैसंवैधानिक व्यवस्था का,सबसे प्रबल आकर्षण है। यह एक दायित्वों-जिम्मेदारियों को,बतलाती हैकर्तव्यों को पूरा करने का,उत्तम पाठ पढ़ाती है। यह एक औपचारिक संकेत…

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माँ का सफर

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’अलवर(राजस्थान)*************************************** मेरी माँ घर में सबसे बड़ी थी,हर मुश्किल में साथ खड़ी थीवर्षों बीत गए पिता को गुजरे,वो बेचारी गरीबी से लड़ी थी। पिताजी के होते कोई ग़म…

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