शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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कितना दिल का दर्द छुपाओ कभी सामने आ जाता है,
निर्मल मन का यह आईना सारी बात बता जाता है।
क्यों रिश्तो में पड़ी दरारें क्यों नाते टूटे जाते हैं,
कल तक जो अपने थे वो ही दुश्मन जैसे बन जाते हैं
समझ नहीं आता है फिर भी भाव हृदय समझा जाता है,
निर्मल मन का ये…।
तन के उजले मन के काले घूमें बहुत मुखौटा डाले,
तन पर चादर राम नाम की भीतर हैं मय के मतवाले
सत्य मगर आईना बन कर पर्दाफाश करा जाता है,
निर्मल मन का ये…।
कितना भ्रष्टाचार हो रहा अनाचार भी हद से ज्यादा,
बड़े बड़े तो लूट रहे हैं कोई भी कम नहीं है प्यादा
कभी न कभी सच का दर्पण इनका भेद बता जाता है,
निर्मल मन का ये…
मन दर्पण को उज्ज्वल रखो सच का साथ निभाएगा वो,
जितना कालिख होगी मन में उसको धोता जाएगा वो।
जो भी अच्छा कर्म करेंगे साथ वही अपने जाता है,
निर्मल मन का यह आईना सारी बात बता जाता है…॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है