भोर
तारा प्रजापत ‘प्रीत’ रातानाड़ा(राजस्थान) ************************************************* धरती के आँगन पर, देखो भोर ने फिर से डेरा डालाl आकाश की गोदी से, उतर कर सूरज ने, अंगड़ाई लीl अलसायी-सी रात ने देखो,…
तारा प्रजापत ‘प्रीत’ रातानाड़ा(राजस्थान) ************************************************* धरती के आँगन पर, देखो भोर ने फिर से डेरा डालाl आकाश की गोदी से, उतर कर सूरज ने, अंगड़ाई लीl अलसायी-सी रात ने देखो,…
ममता बैरागी धार(मध्यप्रदेश) ****************************************************************** आज बहुत खुशी से सारी दुनिया झूम ऊठी, हर्षित तन-मन हुआ,फव्वारों के साथ मीठी। कितना प्यारा मौसम हुआ,छाने लगी रौनक है, हरियाली की चादर ओढ़ आज…
प्रेमा नड़ुविनमनी धारवाड़(कर्नाटक) ******************************************************************* मेरे सपनों के महलों में, रखना तुम कदम एक बार। तेरे होंठ से होंठ मिलाकर मैं चूम लूँ जरा, मेरे सपनों की दुकान से मैं कौन-सा…
उमेशचन्द यादव बलिया (उत्तरप्रदेश) *************************************************** कहने को तो सभी मित्र हैं,पर एक हमारी अर्ज़ है, विपदा में जो करे मदद,यही मित्र का फ़र्ज़ है। बिन बुलाए दौड़कर आए,कहे ना कोई…
मोहित जागेटिया भीलवाड़ा(राजस्थान) ************************************************************************** दिल का क्या कसूर है, जो तुमसे दिल लगा दिया। दिल ने तुम्हें चाहा, तुम्हें सब कुछ बता दिया॥ तुम्हारी चाहत को, खुद ने अब स्वीकार…
डॉ. लखन रघुवंशी बड़नगर(मध्यप्रदेश) ************************************************** पक्षियों को समंदर से प्यार है, वे जब भी पानी को छूकर अपने पंख फड़फड़ाते हैं, मानो समंदर की सोयी आत्मा को जगाते हैं। और…
पूनम दुबे सरगुजा(छत्तीसगढ़) ****************************************************************************** बैठे-बैठे मन कहीं खो गया, कड़ी धूप में आज रो दिया... दूर दूर तक हाय पेड़ नहीं, ना हवा ठंडी है,ना छाया कहीं। रूक जाओ अब…
शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’ रावतसर(राजस्थान) *********************************************************************************- आओ मेघा राजा आओ, प्यासी धरती जल बरसाओl सूखी नदियाँ ताल-तलैया, आकर इनकी प्यास बुझाओl आओ मेघा राजा... ढोर पखेरू मानुष सारे, तड़प रहे…
संजय जैन मुम्बई(महाराष्ट्र) ************************************************ जीवन है अनमोल तो, क्या लगाओगे तुम मोल। बिकता है सब-कुछ, पर मिलता नहीं जीवन। इसलिए 'संजय' कहता है, क्यों व्यर्थ गवां रहे हो, यह मानव…
डॉ.सरला सिंह दिल्ली *********************************************** मानव है कितना कठोर निर्दयी, दया नहीं आती है मौत पर भी। नहीं समझता पिता के जज्बात, कांधे पे बेटे के शव का बोझ भी। गाड़ियों…