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बरसो रे मेघा बरसो

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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आओ मेघा राजा आओ,
प्यासी धरती जल बरसाओl
सूखी नदियाँ ताल-तलैया,
आकर इनकी प्यास बुझाओl
आओ मेघा राजा…

ढोर पखेरू मानुष सारे,
तड़प रहे प्यासे बेचारेl
जल ही जीवन प्राण वही है,
प्राण दान इनको दे जाओl
आओ मेघा राजा…

सूख गयी खेतों की बाली,
धानी चुनर हो गई कालीl
ताक रहा है आसमान को,
दरिया से जल भर-भर लाओl
आओ मेघा राजा…

मेघा राजा इतना बरसो,
ताल पोखरे सारे भर दोl
कण भी ना सूखा रह जाये,
फिर से तुम हरियाली लाओl
आओ मेघा राजा…

बाग-बगीचे खिल खिल जाये,
कोयल मीठे गीत सुनायेl
भँवरे की गुन-गुन सुन करके,
तुम भी मस्ती में आ जाओl
आओ मेघा राजा…

मेघों की सुनकर के गर्जन,
करने लगे मोर सब नर्तनl
पिहू-पिहू कर तुम्हें बुलाये,
गरज-गरज कर जल बरसाओl
आओ मेघा राजा…

इंतजार करते हैं तेरा,
छोड़ दिया है सबने डेराl
सबकी आँखें लगी हैं तुम पर,
सारे नभ पर तुम छा जाओl
आओ मेघा राजा…

सूखे होंठ प्यास के मारे,
सब मिल करके तुम्हें पुकारेl
धरती का जल सूख रहा है,
प्यासी धरा हरी कर जाओl
आओ मेघा राजा…

तुम बिन जीवन प्राण नहीं है,
बिन तेरे भी त्राण नहीं हैl
तुमसे ही जीवन है अपना,
दुनिया को जीवन दे जाओl

आओ मेघा राजा आओ,
प्यासी धरती जल बरसाओll

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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