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हरे-भरे पेड़

पूनम दुबे
सरगुजा(छत्तीसगढ़) 
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बैठे-बैठे मन कहीं खो गया,
कड़ी धूप में आज रो दिया…
दूर दूर तक हाय पेड़ नहीं,
ना हवा ठंडी है,ना छाया कहीं।

रूक जाओ अब भी ऐ मानव,
पेड़ काटकर बनो ना दानव…
क्यूं ये अपराध हो रहा,
जघन बढ़ा पाप हो रहा…
पेड़ों से ही साँसें अपनी।

आओ हम सब पेड़ लगाएं,
नेक धर्म नियम अपनाएं…
आने वाले पीढ़ियों की,
हम जिंदगी सजाएं…
बड़े-बूढ़ों की तरह ही,
ये हमारे पुराने वृक्ष…
इनकी सेवा इनकी रक्षा ही,
हमारे जीवन का मूलमंत्र।

इनकी छाया के नीचे,
अपना बचपन गुजरा…
इनकी शाखाओं से परिवार,
जैसे हिलना-मिलना…
ना करो बर्बाद इन्हें,
आँखें मेरी भर आई…
सोचो हरियाली पेड़ों से आई।
पेड़ बचाकर जीवन बचाएं॥

परिचय-श्रीमती पूनम दुबे का बसेरा अम्बिकापुर,सरगुजा(छत्तीसगढ़)में है। गहमर जिला गाजीपुर(उत्तरप्रदेश)में ३० जनवरी को जन्मीं और मूल निवास-अम्बिकापुर में हीं है। आपकी शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत विशारद है। साहित्य में उपलब्धियाँ देखें तो-हिन्दी सागर सम्मान (सम्मान पत्र),श्रेष्ठ बुलबुल सम्मान,महामना नवोदित साहित्य सृजन रचनाकार सम्मान( सरगुजा),काव्य मित्र सम्मान (अम्बिकापुर ) प्रमुख है। इसके अतिरिक्त सम्मेलन-संगोष्ठी आदि में सक्रिय सहभागिता के लिए कई सम्मान-पत्र मिले हैं।

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