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बदल गई जिंदगी

विजय कुमार
मणिकपुर(बिहार)

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जहाँ मिलते हजारों भीड़ में
वहाँ एक भी न मिला,
जिंदगी बदली न बदली…
हम तो बदल गए।

सोचा था डॉक्टर बनूं
पर मरीज बन गए,
जिंदगी बदली न बदली…
हम तो बदल गए ।

अहंकार की झूठी शान
सबके घमंड टूट गए,
जिंदगी बदली न बदली…
हम तो बदल गए।

सपने सजाए थे बहुत
पर एक भी न चली,
जिंदगी बदली न बदली…
हम तो बदल गए।

जहाँ शादियों में लगते मेले
वहाँ दस से काम चले,
जिंदगी बदली न बदली…
हम तो बदल गए।

जहाँ जाके माथा टेकूं!
वो भी बंद मिले।
जिंदगी बदली न बदली,
हम तो बदल गए॥

परिचय–विजय कुमार का बसेरा बिहार के ग्राम-मणिकपुर जिला-दरभंगा में है।जन्म तारीख २ फरवरी १९८९ एवं जन्म स्थान- मणिकपुर है। स्नातकोत्तर (इतिहास)तक शिक्षित हैं। इनका कार्यक्षेत्र अध्यापन (शिक्षक)है। सामाजिक गतिविधि में समाजसेवा से जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता एवं कहानी है। हिंदी,अंग्रेजी और मैथिली भाषा जानने वाले विजय कुमार की लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक समस्याओं को उजागर करना एवं जागरूकता लाना है। इनके पसंदीदा लेखक-रामधारीसिंह ‘दिनकर’ हैं। प्रेरणा पुंज-खुद की मजबूरी है। रूचि-पठन एवं पाठन में है।

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