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चीन:बहिष्कार बड़ी तरकीब से धीरे-धीरे किया जाए

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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इस सवाल का दो-टूक जवाब देना आसान नहीं है कि चीनी माल का हम लोग बहिष्कार करें या न करें। जबसे लद्दाख में भारतीय और चीनी सेनाएं एक दूसरे के आमने-सामने आ खड़ी हुईं हैं,देश के कई संगठन,कई नेता,कई बाबा और कई लाला लोग मांग कर रहे हैं कि भारत सरकार चीन का हुक्का-पानी बंद कर दे। उनकी नाराज़गी जायज है,क्योंकि नरेंद्र मोदी की सरकार ने चीनी नेताओं के साथ काफी अच्छे संबंध बना रखे हैं। इतना ही नहीं,’कोरोना’ के मामले में दुनिया के लगभग सवा सौ देश चीन की तरफ उंगली उठा रहे हैं। ऐसे में भारत बिल्कुल मौनी बाबा बना हुआ है। हम चीन से लगभग ५-6 लाख करोड़ रु. का व्यापार भी कर रहे हैं,जिसमें उसी का पलड़ा भारी भी है। इसके बावजूद लद्दाख में चीन ने भारत की सीमा में घुसकर अपने ट्रक,टैंक और जहाज अड़ा दिए हैं। बातचीत से विवाद हल करने का बहाना वह बना रहा है लेकिन बात आगे बढ़ ही नहीं रही है। ऐसे में यदि भारत के कुछ लोग चीन को आर्थिक सबक सिखाना चाहते हैं तो यह स्वाभाविक है,लेकिन यदि भारत सरकार हमारे इन गुस्साए हुए लोगों के इशारे पर व्यापारबंदी घोषित कर दे तो क्या ठीक होगा ? यह ठीक नहीं होगा। सरकार यदि चीन के साथ व्यापारबंदी घोषित कर दे तो यह ठीक है कि चीन का लगभग ७४ बिलियन डाॅलर का माल भारत आना बंद हो जाएगा,लेकिन हमारा भी लगभग १८ बिलियन डाॅलर का माल वह क्यों खरीदेगा ? इसके अलावा हमारे लाखों व्यापारी और कर्मचारी दुतरफा व्यापारबंदी के कारण बेरोजगार हो जाएंगे। पहले ही कोरोना ने करोड़ों लोगों को घर बिठा दिया है। इस विभीषिका को हम अचानक क्यों तूल देना चाहते हैं ? इसके सिवाय चीन की कई कंपनियां भारत में कार्यरत हैं। भारत की कई कंपनियों में चीन ने पैसा भी लगा रखा है। यदि सरकार व्यापारबंदी करेगी तो अचानक बहुत मुश्किलें खड़ी हो जाएगी। चीन को खुलेआम भारतीय बाजारों पर कब्जा करने देना बिल्कुल भी उचित नहीं है,पर यह काम बड़ी तरकीब से और धीरे-धीरे किया जाना चाहिए। चीनी माल को नहीं खरीदने का अभियान-गैर सरकारी संगठनों और राजनीतिक दलों को चलाना चाहिए। हम जो ६०-७० बिलियन डाॅलर का माल चीन से खरीदते हैं,उसमें १० बिलियन डाॅलर के माल की खरीद शायद टाली नहीं जा सकती,लेकिन कपड़े,खिलौने, जूते,मोबाइल फोन,एयरकंडीशनर्स, रेफ्रिजेटर्स,मूर्तियां आदि तो हम ही बना सकते हैं। चीन के कई एप और वेबसाइटों के बहिष्कार की बात भी सोची जा सकती है। यदि हमें भारत को आत्मनिर्भर बनाना है तो चीन से क्या,हर देश से माल खरीदने में हमें काफी संकोच और सावधानी से काम लेना चाहिए।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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