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कोरोना:विकास के संतुलन पर गंभीरता से सोचना होगा

आशा आजाद
कोरबा (छत्तीसगढ़)

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‘कोरोना’ विषाणु से पैदा हुई महामारी ने वैश्विक समाज और प्रशासन की तमाम कमजोरियों को उजागर कर दिया है,साथ ही इस खतरनाक संकट से आगे बढ़ने का रास्ता भी दिखाया है। कोविड-१९ की यह खतरनाक बीमारी जो असमय ही मनुष्य जीवन पर हावी हो गई है,ऐसा संकट है जो मनुष्य जाति को क्षणभर में नष्ट कर सकता है। यह संकट मानव जीवन को आर्थिक विकास,सामाजिक,राजनीतिक सभी दृष्टि से प्रभावित कर रहा है। यदि ‘तालाबंदी’ जैसी स्थिति लंबे समय तक रहेगी तो दुनिया में निराशा,तनाव,चिंता जैसी गंभीर मानसिक बीमारियों की बाढ़ आ जाएगी जो व्यक्तिगत ही नहीं,वरन दुनिया में सामाजिक,आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हो जाएगी। कोरोना बीमारी के प्रभाव से कम,अपितु आर्थिक समस्याओं के भार से मनुष्य की मनोदशा अधिक बिगड़ जाएगी।
यह कोरोना काल विश्व के लिए एक ऐसा संकट है,जिसने भविष्य के सोचने के लिए विवश कर दिया है। कोरोना के संक्रमण से पूरी दुनिया थम-सी गई है। विद्यालय-महाविद्यालय से लेकर यात्राओं पर प्रतिबंध, लोगों के इकट्ठा होने पर पाबंदी और इस पाबंदी से मानव किसी ना किसी तरह प्रभावित हो ही रहा है। एक बीमारी के खिलाफ यह बेजोड़ वैश्विक प्रतिक्रिया है,पर प्रश्न यह भी उठता है कि क्या तालाबंदी समाप्त होने पर भी आम जिंदगी में पुनः वापसी हो पाएगी ? क्या इस भयावह बीमारी से परेशान और पूरी अर्थव्यवस्था थमने को भुलाकर परेशान लोग स्वतंत्र होकर सामान्य जिंदगी व्यतीत कर पाएंगे ?
दूसरे पक्ष में,यदि लंबे समय तक सभी स्थितियों में प्रतिबंध हो तो सामाजिक और आर्थिक नुकसान विध्वंसकारी हैं। प्रतिबंध समाप्त होने पर भी मानव जीवन पर यह संकट पूर्णतः है। संकट से संक्रमित होने के कारण अनजाने में लोगों की रोग प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ सकती है,किंतु इसे होने में काफी समय लग सकता है। इसके लिए हमें सतर्कता का ध्यान रखकर दूसरों के स्वास्थ्य पर भी कुछ ध्यान देना होगा,जो हमारे इर्द-गिर्द अधिकतर रहते हैं। इससे इस संकट को दूर करने में हमारी कुछ भागीदारी हो सकती है। यह संकट इतनी जल्दी समाप्त होने की कगार पर नहीं है,इसलिए टीका बन जाने के उपरांत भी हमें सावधानी के साथ जीवन व्यतीत करना होगा। यदि २ या अधिक सालों तक यह तालाबंदी जारी रहती है तो देश का एक बड़ा हिस्सा संक्रमित हो जाएगा।
विकास की अंधी दौड़ में धरती के पर्यावरण का हमने जो हाल किया है,वह बीते करीब चार दशक से चिंता का विषय तो बना है लेकिन विकसित देश अपनी जिम्मेदारी निभाने की बजाय विकासशील देशों पर हावी होने के लिए इस्तेमाल करते हैं और विकासशील देश भी विकसित देशों के रास्ते पर चलकर पर्यावरण नष्ट करने के अभियान में शामिल हो गए हैं। पृथ्वी सम्मेलन के २८
साल बाद भी हालात जस के तस ही थे,पर कोरोना महामारी से समूचे विश्व में लोगों ने पर्यावरण को स्वस्थ होने का अवसर दे दिया है। हवा का जहर क्षीण हो गया है और नदियों का जल निर्मल हो गया है। भारत में जिस गंगा को साफ करने के अभियान कई साल से चल रहे थे और बीते ५ साल में भी करीब २०००० करोड़ रुपए खर्च करने पर भी साधारण सफलता नहीं दिख रही थी,उसी गंगा को तालाबंदी ने निर्मल बना दिया है। इसी तरह चंडीगढ़ में हिमालय की चोटियां दिखने लगी हैं। औद्योगिक आय की दर जरूर गिरी है,अर्थव्यवस्था खतरे में है,लेकिन यही समय है कि पूरी दुनिया पर्यावरण और विकास के संतुलन पर उतनी ही गंभीरता से सोचे,जितना वर्तमान में कोरोना संकट से निपटने की सोच रही है।

परिचय–आशा आजाद का जन्म बाल्को (कोरबा,छत्तीसगढ़)में २० अगस्त १९७८ को हुआ है। कोरबा के मानिकपुर में ही निवासरत श्रीमती आजाद को हिंदी,अंग्रेजी व छत्तीसगढ़ी भाषा का ज्ञान है। एम.टेक.(व्यवहारिक भूविज्ञान)तक शिक्षित श्रीमती आजाद का कार्यक्षेत्र-शा.इ. महाविद्यालय (कोरबा) है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत आपकी सक्रियता लेखन में है। इनकी लेखन विधा-छंदबद्ध कविताएँ (हिंदी, छत्तीसगढ़ी भाषा)सहित गीत,आलेख,मुक्तक है। आपकी पुस्तक प्रकाशाधीन है,जबकि बहुत-सी रचनाएँ वेब, ब्लॉग और पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं। आपको छंदबद्ध कविता, आलेख,शोध-पत्र हेतु कई सम्मान-पुरस्कार मिले हैं। ब्लॉग पर लेखन में सक्रिय आशा आजाद की विशेष उपलब्धि-दूरदर्शन, आकाशवाणी,शोध-पत्र हेतु सम्मान पाना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जनहित में संदेशप्रद कविताओं का सृजन है,जिससे प्रेरित होकर हृदय भाव परिवर्तन हो और मानुष नेकी की राह पर चलें। पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामसिंह दिनकर,कोदूराम दलित जी, तुलसीदास,कबीर दास को मानने वाली आशा आजाद के लिए प्रेरणापुंज-अरुण कुमार निगम (जनकवि कोदूराम दलित जी के सुपुत्र)हैं। श्रीमती आजाद की विशेषज्ञता-छंद और सरल-सहज स्वभाव है। आपका जीवन लक्ष्य-साहित्य सृजन से यदि एक व्यक्ति भी पढ़कर लाभान्वित होता है तो, सृजन सार्थक होगा। देवी-देवताओं और वीरों के लिए बड़े-बड़े विद्वानों ने बहुत कुछ लिख छोड़ा है,जो अनगिनत है। यदि हम वर्तमान (कलयुग)की पीड़ा,जनहित का उद्धार,संदेश का सृजन करें तो निश्चित ही देश एक नवीन युग की ओर जाएगा। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा से श्रेष्ठ कोई भाषा नहीं है,यह बहुत ही सरलता से मनुष्य के हृदय में अपना स्थान बना लेती है। हिंदी भाषा की मृदुवाणी हृदय में अमृत घोल देती है। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति की ओर प्रेम, स्नेह,अपनत्व का भाव स्वतः बना लेती है।”

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