श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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आ गई है दिवाली,बांट लो,खुशियां अपार,
दीए से दीया जलाकर,करो दूर अंधकार।
लौटे हैं देखो अयोध्या,श्री राम काट वनवास,
झूम उठी अयोध्या नगरी,भर मन में उल्लास।
रंग-बिरंगी बनी रंगोली,मन में सब भरे उमंग,
देखो शिवपुत्र ले आए,लक्ष्मी जी को संग।
हे रिद्धि-सिद्धि आप भी आओ,मेरी कुटिया में करो प्रवेश।
राह आपकी देखती,माता लक्ष्मी,और गणेश।
युग-युग से है चल रही,यही पुरानी रीत।
होती है बुराईयों पर,सदा अच्छाई की जीत।
बनना तुम रावण जैसा भाई,जो नहीं है सकल जहान,
अपनी बहना के लिए,दिए हैं जिसने प्राण।
अवधपुरी में आज तो भाई,छाई गजब बहार,
ताक रही है सारी प्रजा,नयन बिछाए द्वार।
सबने मिलकर दीए जलाए,सजा दिए घर-द्वार,
ताकि श्रीराम के पैरों में,चुभे न कोई खार।
आज अमावस रात है,तिमिर हंसे चहुंओर,
एक दीप जब जल उठा,हो गया उजियारे चहुं छोर।
सब सखियां मिल नाचती,गाती सुमंगलाचार,
आज अवध में हो रहा,फिर से राम अवतार॥
परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।