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अपनी गलतियों के लिए दूसरों को जिम्मेदार मत ठहराइए

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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हमसे जीवन में कई बार छोटी-बड़ी गलतियां होती हैं। गलतियों से हम बहुत कुछ सीखते हैं,लेकिन एक चीज जो हमें सीखनी चाहिए वो हम नहीं कर पातेl वो है अपनी गलतियों के लिए दूसरों को जिम्मेदार ना ठहराना। अपनी गलती का जिम्मा खुद लें।
अक्सर आपने देखा होगा कि हमसे अगर एक कप भी टूट जाए तो हम अपनी गलती को ना मानते हुए किसी ना किसी पर इल्जाम लगाने की कोशिश करते हैं। अक्सर मैं जब उदास हुआ तो उन सभी हालातों को ढूंढ़ता था,जो मुझे उदास बना सकते थे। वजह थी अपनी उदासी के लिए किसी को जिम्मेदार ठहराना।
हम इस आदत के शिकार बन जाते हैं और धीरे-धीरे किसी भी गलती के लिए दूसरों पर ही आरोप लगाना शुरु कर देते हैं। कई बार हम असफल होने पर अपनी अक्षमता को ना देखकर हालात या लोगों को जिम्मेदार बता देते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारे आसपास का वातावरण हमारी असफलता को स्वीकार नहीं कर पाता और उन लोगों से बचने के लिए हम बहाने बनाने लगते हैं। यही बहाने आरोप के रूप में सामने आते हैं।
किसी भी चीज़ की ज़िम्मेदारी ना लेने के लिए हम दूसरों पर हमला करने की कोशिश करने लगते हैं। ऐसा हम अपनी नाकामयाबी को छिपाने के लिए करते हैं। अगर ऐसे लोगों के काम के बारे में जानने की कोशिश की जाती है,तो गैर जिम्मेदार लोग रक्षात्मक हो जाते हैं और भागने की कोशिश करते हैं। उन्हें अपने बुरे व्यवहार की वजह से पैदा होने वाले हालातों का डर होता है। आरोप लगाने से वह उस चीज़ पर से ध्यान हटाने की कोशिश करते हैं,जो उन्हें लगता है कि उन्होंने गलत किया है।
क्या आप जानते हैं कि,कोई अपने-आपमें पूर्ण नहीं हो सकता,कभी-कभी अपूर्ण होना भी अच्छा होता है और अपना यह रूप दुनिया के आगे दिखाने में भी कोई दिक्कत नहीं है।नाकामयाबी जिंदगी का हिस्सा है,और इसे अपनाने के बाद ही आप जीवन में तरक्की कर पाएंगे। जब हम अपनी असफलताओं को अपनाते नहीं हैं,तब हम यह भी नहीं मानते कि हम अपूर्ण हैं। इसलिए अपनी असफलताओं को अपनाकर देखिएl फिर आपको यह भी पता लग जाएगा कि सुधार की जरूरत कहां है।
अपनी गलतियों से भागने का सबसे आसान तरीका है,दूसरों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराकर अपने मन को शांत कर लेना। किसी के पास खुद के आकलन का वक्त नहीं है। हम यह कभी नहीं देखते कि हमने जो किया है वह गलत है,और हमें इसे अपनाकर सुधार करने की जरूरत है। हम हमेशा यही सोचते हैं कि हमारी गलतियों का परिणाम कहीं हमारी छवि खराब ना कर दे। ज्यादातर वो लोग,जो इस `इल्जाम खेल` के सहारे जीते हैं,ऐसे लोग कभी प्रगति नहीं कर पाते,क्योंकि वह अपनी गलतियों से कुछ भी नहीं सीख पाते।
अधिकतर गलती स्वीकारने में हमारा अहम भाव आड़े आता हैl अहम के कारण हम दूसरे को तुच्छ समझने लगते हैं और कभी-कभी हम सामने वाले से अधिक भारी-ताकतवर होते हैं,तब हम अपनी गलती नहीं स्वीकारते हैंl

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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