कुल पृष्ठ दर्शन : 204

You are currently viewing चूक ना जाएं ये रिश्ते ऋतुओं से

चूक ना जाएं ये रिश्ते ऋतुओं से

अनूप कुमार श्रीवास्तव
इंदौर (मध्यप्रदेश)
******************************************

ज से जल जीवन स्पर्धा विशेष…

जहां तक हो जल,वहीं तक बादल है,
वहीं पर जीवन हो,वहीं पर नवल है।

बचाना है इक-इक बूँदें बरसाती,
धरा गरमाई कबसे अब घायल है।
बढ़ाना हर तरफ से यूँ हरियाली है,
वही हो घर जहां पर बरगद-पीपल है॥

नदी कुओं झीलें तालाबें सब सूखी,
पिघलना परबत शिखरों का भी है।
प्रार्थना नई गाएं आओ क्यों विकल है,
जहां का जीवन सदृश गंगाजल है॥

कहीं चूक ना जाएं ये रिश्ते ऋतुओं से,
कहीं हो ना जाएं हमीं खुद बंजर से।
दिनों-दिन बढ़तीं तपन कब शीतल है,
जतन सारे लगा दें जीवन निर्मल है॥

यही सावन यही सर्दी का प्रतिफल है,
बचा है धरती का जल आजकल है।
जहां तक हो जल,वहीं तक बादल है,
वहीं पर जीवन हो,वहीं पर नवल है॥

हम मेहनतकश आ यतन कर डालें,
हम भगीरथ हम अर्जुन का बल हैं।
प्रतिज्ञा भीष्म की बन कर चलो,
निभा डाले सब मसलें यहां जल है॥

जहां तक हो जल वहीं तक बादल है,
वहीं पर जीवन हो,वहीं पर नवल है…॥

Leave a Reply