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क्या चंद्रमा बड़ी देर तक सोता है!

डॉ.सोना सिंह 
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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बड़े दिन की छुट्टी विशेष……. 


बड़े दिन की छुट्टी बड़ी होती है,
और बड़ी छुट्टी और भी बड़ी लगती है
लेकिन वह छुट्टी होती है!
यह कौन कह सकता है…?
बड़े दिन की छुट्टी तो साल में एक बार आती ही है,
या निर्धारित है
जब यह निर्धारित है,तो बड़ी क्या-छोटी भी हो सकती है!
क्या जब यह निर्धारित है,
तो बड़ी क्या और छोटी क्या..!
क्या सूरज अपने घर बड़ी देर से जाता है, क्या चंद्रमा बड़ी देर तक सोता है!
तभी कहलाती होगी यह बड़े दिन की छुट्टी..। बड़े दिन का गीत गाते हैं,
बड़े दिन का खाना बनाते
बड़े-बड़े समूह को और बड़ा करते,
करते रहते हैं प्रतीक्षा बड़े दिन की छुट्टी की। बर्फ की चादर-सी और की चमक-सी, अल्लाह की दमकती
हर क्षण याद दिलाती है बड़े दिन की छुट्टी॥

परिचय-डॉ.सोना सिंह का बसेरा मध्यप्रदेश के इंदौर में हैl संप्रति से आप देवी अहिल्या विश्वविद्यालय,इन्दौर के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में व्याख्याता के रूप में कार्यरत हैंl यहां की विभागाध्यक्ष डॉ.सिंह की रचनाओं का इंदौर से दिल्ली तक की पत्रिकाओं एवं दैनिक पत्रों में समय-समय पर आलेख,कविता तथा शोध पत्रों के रूप में प्रकाशन हो चुका है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के भारतेन्दु हरिशचंद्र राष्ट्रीय पुरस्कार से आप सम्मानित (पुस्तक-विकास संचार एवं अवधारणाएँ) हैं। आपने यूनीसेफ के लिए पुस्तक `जिंदगी जिंदाबाद` का सम्पादन भी किया है। व्यवहारिक और प्रायोगिक पत्रकारिता की पक्षधर,शोध निदेशक एवं व्यवहार कुशल डॉ.सिंह के ४० से अधिक शोध पत्रों का प्रकाशन,२०० समीक्षा आलेख तथा ५ पुस्तकों का लेखन-प्रकाशन हुआ है। जीवन की अनुभूतियों सहित प्रेम,सौंदर्य को देखना,उन सभी को पाठकों तक पहुंचाना और अपने स्तर पर साहित्य और भाषा की सेवा करना ही आपकी लेखनी का उद्देश्य है।

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