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मत नीर बहाओ तुम…

डॉ. रचना पांडे
भिलाई(छत्तीसगढ़)
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मत नैनों से नीर बहाओ तुम,
मत दिल के दर्द दिखाओ तुम।

कौन है जो दर्द को समझेगा,
कौन है जो मीठे बोल कहेगा
कौन है जो गले लगाकर तुम्हें,
दुखी मत हो ये सब कहेगा।

क्योंकि,
सूरज के इस तेज में तुम हो
चाँद की चाँदनी में तुम हो।
इस धरती पर जन्म मरण तक,
संबंधों के हर संवेग में तुम हो।

नमक की नमकीन बूंदों में
मत अपना आस्तित्व घूलाओ तुम।
मत खुद को दुखी बनाओ तुम,
मत नैनों से नीर बहाओ तुम॥

सपनों की उड़ान तुम्हीं हो,
संगीत की झंकार तुम्हीं हो।
आँगन की मुस्कान तुम्हीं हो,
प्रेम का जग में आधार तुम्हीं हो।

चंद निष्ठुर बातों से घबरा कर,
मत कोमल हृदय दुखाओ तुम।
मत खुद को दुखी बनाओ तुम,
मत नैनों से नीर बहाओ तुम॥

दिल की हर साँस में तुम हो,
दरवाज़े की आहट में तुम हो।
दूर तक दिखते रास्तों के तट पर,
राह के कदम-कदम पर तुम हो।

तुम से मिली ताकत की ज्वाला,
दु:ख के अंगारों से ना जलाओ तुम।
मत खुद को दुखी बनाओ तुम,
मत नैनों से नीर बहाओ तुम॥

क्योंकि,
कौन है जो दर्द को समझेगा,
कौन है जो मीठे बोल कहेगा।
कौन है जो गले लगाकर तुमको,
‘दुखी मत हो अब’ ये कहेगा॥

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