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अर्थ-संकट के बादल

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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भारत की अर्थ-व्यवस्था अब अनर्थ-व्यवस्था बनती जा रही है। इससे बड़ा अनर्थ क्या होगा कि,सारी दुनिया में सबसे ज्यादा गिरावट भारत की अर्थ-व्यवस्था में हुई है। कोरोना की महामारी से दुनिया के महाशक्ति राष्ट्रों के भी होश ठिकाने लगा दिए हैं,लेकिन उनके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में १०-१५ प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट नहीं आई है। ब्रिटेन की गिरावट २० प्रतिशत है,लेकिन हमने ब्रिटेन को भी काफी पीछे छोड़ दिया है। अप्रैल से जून की तिमाही में हमारी गिरावट २३.९ प्रतिशत हो गई है। यह आँकड़ा राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान ने काफी खोज-बीन के बाद जारी किया है,लेकिन जो छोटे-मोटे करोड़ों काम-धंधे गाँवों में बंद हो गए हैं,लगभग १० करोड़ लोग घर बैठ गए हैं और २ करोड़ नौकरियां चली गई हैं,यदि इन सबको भी जोड़ लिया जाए तो इस संस्थान का आँकड़ा और भी भयावह हो सकता है। गिरावट की यह शुरुआत है,आगे-आगे देखिए कि होता है क्या ? यह भी हो सकता है कि अन्य देशों के मुकाबले हमारी अर्थ-व्यवस्था तेज रफ्तार पकड़ ले और कुछ महीनों में ही गाड़ी पटरी पर लौट आए। अभी तो इतनी गिरावट है,जितनी पिछले ४० साल में कभी नहीं हुई। अर्थ-संकट के घने बादल घिर रहे हैं। संतोष का विषय है कि खेती में इसी अवधि में ३.४ प्रतिशत की वृद्धि हुई है। याने भारत को अपनी भूख मिटाने के लिए किसी के आगे हाथ फैलाने की जरुरत नहीं होगी,पर आम लोगों में पैसों की किल्लत इस कदर हो गई है कि उनकी खरीददारी ५४.३ प्रतिशत गिर गई है,याने लोग ‘आधी और रुखी भली,पूरी सो संताप’ से ही काम चला रहे हैं। बाजार खुल गए हैं,लेकिन ग्राहक कहां हैं ? कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं। अब वह गाँवों में भी फैलने लगा है। डर के मारे लोग घरों में दुबके हुए हैं। बड़े-बड़े कारखाने फिर खुल रहे हैं,लेकिन उनकी बनाई चीजें खरीदेगा कौन ? राज्य सरकारें अपनी जीएसटी राशि के लिए चीख रही हैं। केन्द्र सरकार ने देश के वंचितों और गरीबों को कुछ राहत जरुर दी है,लेकिन वह ऊंट के मुँह में जीरे के समान है। इस वक्त जरुरत तो यह है कि,लोगों के हाथ में कुछ पैसा पहुंचे,ताकि देश में खरीददारी बढ़े। संकट का यह काफी खतरनाक समय है। सिर्फ लफ्फाजी से काम नहीं चलेगा। सरकार को जो करना है,वह तो वह करेगी ही लेकिन देश में १५-२० करोड़ लोग ऐसे जरुर हैं,जो अपने करोड़ों साथी नागरिकों की मदद कर सकते हैं।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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