नमिता घोष
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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गुरुदेव जयंती विशेष……..
‘यदि तुम्हारी पुकार सुनकर तुम्हारा साथ निभाने कोई ना आए तो तुम अकेले चलो।’
ऐसी युगांतकारी पुकार अधिक देर तक अनसुनी नहीं रहती। धीरे-धीरे लोग कदम से कदम मिलाने-जुड़ने लगते हैं,और तब कोई कह उठता है-‘मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल,लोग मिलते गए और कारवां बढ़ता गया।’
‘अहम से मलिन इन वस्त्रों को छोड़ना ही होगा। दिनभर के काम से यह धूलि धूसर और मैले हो गए। इनमें इतनी तपिश भर गई कि सहन नहीं होती। दिन बीतने के साथ मेरा काम भी चूक गया। अब उसके आने की बेला आई। आशा बनी है मन में स्नान कर लूं प्रेम का परिधान पहनना है,कुसुम चुन कर माला गूँथ लूं! आ,जल्दी आ,अब और समय शेष नहीं।'(गीतांजलि)
सारगर्भित भाव गूढ़ संकेतों से युक्त व्यक्त करती इन पंक्तियों के रचयिता महाकवि रविंद्र नाथ टैगोर यानी गुरुदेव सर्व पूजित महान विभूति। क्या परिचय दिया जाए उनका ? व्यक्ति एक,किंतु व्यक्तित्व अनेक,भारतीय संस्कृति के अमर प्रवक्ता, एक कवि,नाटककार,उपन्यासकार,संगीतकार, चित्रकार,दार्शनिक,शिक्षाविद और इन सबसे ऊपर संवेदनशीलता की मूरत! वह जिसने सचमुच व्यष्टि में समष्टि को पा लिया। जो सीमाओं में विश्वास नहीं करता। देश-देशांतर की रेखाएं जिसे नहीं बांधती। सोच में ही जो वैश्विक है,अनंत है,अंतहीन है,उसे बंगभूमि जितनी प्रिय है,भारत भी उतना ही प्रिय है। प्रेम का आगार ऐसा कि संपूर्ण संसार निर्विवाद उन्हें पूछता है,मानता है। उनका दर्शन और उनके जीवनमूल्य मानव मात्र के लिए धरोहर हैं। उनकी रचनाओं का गंभीर्य, औदात्य और उजलापन किसे स्वीकार ना होगा!
रविंद्र नाथ टैगोर पर अपने समाजसेवी साधु सज्जन महर्षि पिता का पूरा प्रभाव पड़ा। वे अपने पिता की चौदहवीं संतान थे। गुरुदेव अप्रतिम रहे। टैगोर का १८८४ में पहला उपन्यास ‘करुणा’ प्रकाशित हुआ। ‘चोखेर बाली’,’नौका डूबी’ और ‘गोरा’ उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं तो ‘बाल्मीकि प्रतिभा’,’मायेर खेला’ जैसे गीतिनाट्य से प्रारंभ हुआ नाटकों का सफर भी कम नहीं रहा। रविंद्रनाथ जी ने गद्य एवं पद्य की विभिन्न विधाओं में लेखनी चलाई। ‘गीतांजलि’ उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध (मूल रूप से बांग्ला भाषा में लिखी)रचना है। इस कृति के लिए रवींद्रनाथ को ‘नोबेल पुरस्कार’ प्रदान किया गया। एशिया में इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले वे प्रथम व्यक्ति थे। इस वैश्विक स्वीकृति ने उनके संपूर्ण जीवन को नई दिशा दे दी। ‘गीतांजलि’ का अनुवाद हिंदी के अलावा डच,फ्रेंच,स्पेनिश एवं वियतनामी भाषाओं में भी हुआ। अंग्रेज सरकार ने रवींद्नाथ को ‘सर’ की उपाधि प्रदान की थी,किंतु अंग्रेजों द्वारा जलियांवाला बाग हत्याकांड किए जाने से क्षुब्ध होकर उन्होंने वह सम्मान लौटा दिया। उन्हें भारत वासियों से अत्यधिक प्रेम था। वे सच्चे देशभक्त थे। देशवासियों का,मजदूरों- किसानों का कल्याण हो, इस दृष्टि से उन्होंने ‘नोबेल पुरस्कार’ की राशि भी उनके लिए ट्रस्ट को सौंप दी थी। शांति निकेतन और विश्व भारती जैसे संस्थान उनकी व्यापक सोच के ही परिणाम हैं। गुरुदेव द्वारा लिखी गई कुल २२७ पुस्तकें विश्व साहित्य की अनमोल धरोहर के रूप में संरक्षित है। अपने गीतों को वे स्वयं संगीतबद्ध करते थे। उनके गीतों की संख्या लगभग २००० है।
७ अगस्त १८४१ को इस महान देशभक्त का निधन हो गया। जीवन के अंतिम क्षण में उन्होंने लिखा था, -‘भाग्य चक्र के परिवर्तन से एक दिन अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना ही होगा,किंतु वह किस भारत को अपनी कुत्सित सोच से भरे देश को अपने पीछे छोड़ जाएंगे!’
गुरुदेव के छत्तीसगढ़ से जुड़े कुछ संस्मरण का उल्लेख भी-एक बार रवींद्र नाथ धर्मपत्नी श्रीमती मृणालिनी देवी के इलाज हेतु कोलकाता से पेंड्रा रोड जा रहे थे। ट्रेन के समय में आगे-पीछे हो जाने के कारण ६ घंटे तक उन्हें बिलासपुर स्टेशन में ही प्रथम श्रेणी यात्री प्रतीक्षालय में रुकना पड़ा। बात सन्
१८९६ की है। स्टेशन में गुरुदेव उपन्यास निकाल कर पढ़ने में व्यस्त हो गए। मृणालिनी देवी की नजर वहां सफाई कार्य में लिप्त महिला कर्मी पर पड़ी। वे उससे बातें करने लगी। सफाई कर्मी महिला ने अपना नाम रुकमणी बताया। पति स्टेशन पर कुली का काम करता है,तथा विवाह योग्य बेटी की शादी के लिए आर्थिक अभाव होने की जानकारी भी दी। मृणालिनी देवी ने गुरुदेव को सारी बातें बताई तथा कुछ राशि मदद करने की बात कही। गुरुदेव को पत्नी की क्षयरोग के इलाज हेतु पेंड्रा में कई दिन रुकना था,इसके बावजूद उन्होंने २५₹ दे दिए। इस क्षण ने गुरुदेव को आजीवन छत्तीसगढ़ से जोड़े रखा,और इसका उल्लेख उन्होंने अपनी कविता ‘फाकी’ में किया है। इस तरह गुरुदेव ने छत्तीसगढ़ के बिलासपुर व पेंड्रा में बीते हुए अपने इस क्षण को अपनी कविता में उल्लेखित कर छत्तीसगढ़, बिलासपुर,पेंड्रा तथा रूकमणी को विश्व साहित्य में एक नाम दिया।
विश्व शांति और एकता के सदैव पक्षधर रहे गुरुदेव को कोटिशः प्रणाम।
परिचय-नमिता घोष की शैक्षणिक योग्यता एम.ए.(अर्थशास्त्र),विशारद (संस्कृत)व बी.एड. है। २५ अगस्त को संसार में आई श्रीमती घोष की उपलब्धि सुदीर्घ समय से शिक्षकीय कार्य(शिक्षा विभाग)के साथ सामाजिक दायित्वों एवं लेखन कार्य में अपने को नियोजित करना है। इनकी कविताएं-लेख सतत प्रकाशित होते रहते हैं। बंगला,हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में भी प्रकाशित काव्य संकलन (आकाश मेरा लक्ष्य घर मेरा सत्य)काफी प्रशंसित रहे हैं। इसके लिए आपको विशेष सम्मान से सम्मानित किया गया,जबकि उल्लेखनीय सम्मान अकादमी अवार्ड (पश्चिम बंगाल),छत्तीसगढ़ बंगला अकादमी, मध्यप्रदेश बंगला अकादमी एवं अखिल भारतीय नाट्य उतसव में श्रेष्ठ अभिनय के लिए है। काव्य लेखन पर अनेक बार श्रेष्ठ सम्मान मिला है। कई सामाजिक साहित्यिक एवं संस्था के महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत नमिता घोष ‘राष्ट्र प्रेरणा अवार्ड- २०२०’ से भी विभूषित हुई हैं।