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माँ जैसा प्यार किसी भी रिश्ते में नहीं

नमिता घोष
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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‘विश्व मातृ दिवस’ सारे विश्व में मनाया जाता है। यूँ तो जिंदगी का कोई एक दिन या तारीख माँ को विशेष सम्मानार्थ के लिए ‘मातृ दिवस’ के रूप में मनाने का कोई भी औचित्य नहीं है। कारण,सृष्टि के आरंभ से माँ है-धरती,स्वयं माँ है प्रकृति,स्वयं माँ ही है जीवन का आधार। प्रतिदिन माँ से ही शुरू होकर माँ से ही समाप्त होता है।
इस परिप्रेक्ष्य में कुछ जीवो में माँ की आत्मा की अनुभूति एवं आत्मा होती नन्हें को बड़ा करने के लिए का वर्णन करना चाहूंगी। ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात,माँ एवं मातृभूमि स्वर्ग से भी महान है। इसी परिप्रेक्ष्य में एक माँ बिच्छू,जो यूँ तो विश्व विख्यात है,उन बच्चों का लालन-पालन माँ बिच्छू की पीठ पर ही होता है। माँ बिच्छू अपने पीठ के माँस को ही भोजन के तौर पर उन छोटे-छोटे बच्चों को मुहैया कराती है। बच्चे माँ की पीठ के माँस को खाकर ही बड़े होते रहते हैं और माँ उनके डंक की चुभन सहन करती रहती है,क्योंकि वह माँ है। उस असहनीय दर्द को मादा बिच्छू सहन करती रहती है और यूँ बच्चे बड़े हो जाते हैं। वह माँ बिच्छू की पीठ से उतर कर जमीन पर रहने लगते हैं,रेंगने लगते हैं,लेकिन तब तक माँ बिच्छू दर्द सहते-सहते एवं अपना माँस खिलाते-खिलाते मरणासन्न हो जाती है और यहीं उसकी यह लीला समाप्त हो जाती है।
ठीक उसी तरह मकड़ी माँ अपने बच्चों को अपने ही शरीर के रस को पिलाकर बड़ा करती है। अपनी लार से जाल बुनती है, जिसमें बच्चे सुरक्षित रह सकें। और जैसे ही बच्चे बड़े हो जाते हैं,वह जाल काट कर निकल जाते हैं और माँ मकड़ी वहीं खत्म हो जाती है।
इसी के दूसरे पक्ष में एक और उदाहरण- जहां माँ न केवल बच्चों का भरण-पोषण करती है,अपितु जीवन जीने के लिए उन्हें उपयुक्त शिक्षा भी देती है,ताकि वह जीवन धारण करके इस पृथ्वी पर चलने लायक सक्षम बन सकें। इसका उदाहरण बाज पक्षी है। बच्चों को जन्म देने के बाद वह उन्हें मुँह पर लेकर उड़ती तो है,पर एक ऊंचाई के बाद उसे छोड़ देती है,ताकि बाज पक्षी अपने पंखों पर भरोसा करते हुए उड़ने लायक बन सकें। इसी प्रकार माँ ऊंट अपने बच्चे को जन्म देने के बाद उसे पीछे की टांगों से लात मार कर दूर गिरा देती है। बच्चा ऊंट लड़खड़ाते हुए माँ के दूध के लिए पास आने की कोशिश करता है। माँ उसे एक बार तो दूध पिला देती है,पर फिर उसे अपने से दूर लात मारकर हटा देती है। बच्चा डरने लगता है,सहम जाता है पर भूख के कारण वह फिर उठने की कोशिश करता है। जब वह कोशिश करते-करते कामयाब होने लगता है,तब माँ के पास वह आकर दूध पीता है और माँ उसे बहुत दुलार से सहलाती है। शायद उसकी सोच यही रहती है कि उसका बच्चा बहुत कोशिशों के बाद चलने लायक बन गया है।
ठीक उसी प्रकार जिस तरह कोयल,गौरैया या अन्य पक्षी भी पेड़ की डाल पर घोंसले तो बनाते हैं,बच्चे के लिए काफी दिनों तक दाना लाकर उसे छुपाते भी हैं। फिर जब वह सक्षम हो जाता है या हो जाती है,तब उसे ऊपर से फेंक देते हैं,ताकि वह उड़ने लायक हो जाए और स्वयं अपना भोजन तलाश कर अपना निर्वाह कर सकें।
यह है कतिपय जीवों के मातृत्वबोध,उनकी शिक्षा। हर जीव में माँ का दायित्व,माँ होने का गौरव एवं माँ जैसा मनुष्य वाला प्यार किसी भी रिश्ते में नहीं होता।
माँ ही प्रथम शिक्षिका होती है। परिवार बनता है माँ से,परिवार की प्रथम पाठशाला भी वही होती है। अतः बच्चे के लिए एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना तभी की जा सकती है,जहां मातृशक्ति अवहेलित नहीं होती। अतः वेदों में भी कहा गया है ‘मातृ देवो भाव।’

परिचय-नमिता घोष की शैक्षणिक योग्यता एम.ए.(अर्थशास्त्र),विशारद (संस्कृत)व बी.एड. है। २५ अगस्त को संसार में आई श्रीमती घोष की उपलब्धि सुदीर्घ समय से शिक्षकीय कार्य(शिक्षा विभाग)के साथ सामाजिक दायित्वों एवं लेखन कार्य में अपने को नियोजित करना है। इनकी कविताएं-लेख सतत प्रकाशित होते रहते हैं। बंगला,हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में भी प्रकाशित काव्य संकलन (आकाश मेरा लक्ष्य घर मेरा सत्य)काफी प्रशंसित रहे हैं। इसके लिए आपको विशेष सम्मान से सम्मानित किया गया,जबकि उल्लेखनीय सम्मान अकादमी अवार्ड (पश्चिम बंगाल),छत्तीसगढ़ बंगला अकादमी, मध्यप्रदेश बंगला अकादमी एवं अखिल भारतीय नाट्य उतसव में श्रेष्ठ अभिनय के लिए है। काव्य लेखन पर अनेक बार श्रेष्ठ सम्मान मिला है। कई सामाजिक साहित्यिक एवं संस्था के महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत नमिता घोष ‘राष्ट्र प्रेरणा अवार्ड- २०२०’ से भी विभूषित हुई हैं।

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