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हर साल बाढ़,अब समाधान करना होगा

शशांक मिश्र ‘भारती’
शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश)

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जून से अब तक जब भी टी.वी. खोलो या किसी समाचार-पत्र पर नजर डालो-आज इतने बेघर इतने बहे और इतने मरे…पढ़ने अथवा सुनने को मिलता है। बड़े-बड़े व आधुनिक सुविधाओं शासन व्यवस्थाओं के लिए लोकप्रिय महानगर २-३ घण्टे की बरसात नहीं सह पाते। सड़कों पर पानी भर जाता है,नालियां बन्द होकर सड़कों पर कुलांचें मारने लगते हैं। मुम्बई हो, दिल्ली या कोई अन्य नगर-महानगर सबका एक जैसा हाल है। सालों जमे रहने वाले कर्मचारी एवं दशकों से जनता-जनार्दन के आशीर्वाद से सत्तासुख भोग रहे राजनेता बरसात आरम्भ होते ही ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे जीवन में पहली बार बरसात देख रहे हों। उनको इनसे निपटने का कोई अनुभव नहीं। बाढ़ का पानी उतरने के बाद के हाल,विभीषिकाओं और इससे जनित बीमारियों का ज्ञान नहीं है, इसीलिए जनता हर साल झेलती है। न नीति दिखती है और न ही कहीं नियति। बस सबके सब बाबू गुलाबराय के शब्दों में नर से नारायण ही बन जा रहे हैं। जहां कुछ लोगों के घरों में बाहर की हवा नहीं जाती,वहां साँप-बिच्छू-मेंढक आदि बिन बुलाए मेहमान की तरह पानी के साथ घुस पड़ते हैं।जंगली जानवरों की गाँवों शहरों की ओर आवक बढ़ जाती है। हाथी बेरोक-टोक नेपाल से उत्तर प्रदेश तक उधम मचाते हुए पहुंच जाते हैं।
देश आजाद हुआ,सत्ता में एक ओर प. जवाहर लाल नेहरू तो दूसरी ओर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बैठे। कहा गया कि अगले १५ सालों में बाढ़ की विभीषिका से मुक्ति दिला दी जाएगी।इसके लिए बिहार में कोसी परियोजना भी आरम्भ हुई। तब के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति ने कोसी परियोजना व इस तरह की परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य जो बतलाया था,उसके बाद कई प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति आए-गए,पर वह उद्देश्य आज तक पूरे न हुए।
दुःख की बात यह है कि उस संकल्प के बाद कितने दशक बीत गए। लोगों की चार-चार पीढ़ियों का कल्याण हो गया,पर बिहार आज भी बाढ़ की विभीषिका झेल रहा है। असम के ३३ में से ३२ जिले प्रभावित हो जा रहे हैं। पूरे देश में लगभग २ करोड़ लोग प्रभावित हैं। मरने वालों की संख्या हर साल हजार से ऊपर पहुंच रही है। आखिर समाधान कब होगा,कब तक यह सब झेलने को आम आदमी विवश है। इनके नाम पर इनके ही पैसे की बन्दरबांट होती रहेगी ? देश में अब तक बनी १ हजार से अधिक योजनाओं का असर जमीन पर कम,कागजों पर अधिककब तक दिखता रहेगा। सुविधा सहायता जरूरतमन्दों को बाद में अपने व अपनों को पहले मिलती रहेगी।
पूरा पूर्वी भारत और पूर्वी उत्तर प्रदेश अक्सर बाढ़ की विभीषिका झेलते हैं। इसके अलावा देश में पहाड़ी राज्य व अन्य क्षेत्र भी इसके कोप का शिकार होते रहते हैं। राहत पहुंचा देना,खातों में पैसे डाल देना और वायु सेना की मदद से खाद्य सामग्री गिरा देना इस समस्या का हल नहीं है। इसके लिए सरकार, सरकार में बैठे लोगों,जलशक्ति आपदा प्रबन्धन के अधिकारियों को इन क्षेत्रों की भौगोलिक परिस्थिति,जल के प्रवाह नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र वर्षा की मात्रा व उसके होने के समय का ठोस आंकलन करना होगा। बिहार,असम,उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश, झारखंड,कर्नाटक,उडी़सा,तमिलनाडु,त्रिपुरा, मेघालय और हिमाचल आदि को लेकर रणनीति बनाकर योजनाओं को मूर्त रूप देना होगा। आवश्यकतानुसार नदियों का प्रवाह तंत्र अधिक से कम की ओर मोड़ना होगा। तेज या आकस्मिक जल भराव रोकने के लिए छोटे-छोटे बांध जलाशय बनाने होंगे।रणनीति नियत समय पर और निर्धारित लागत में पूरी होने वाली बनानी होगी।कागजों पर कम जमीन पर अधिक प्रभाव दिखाना होगा। इसके अलावा भू क्षरण,भू कटाव,अनियन्त्रित,वन सम्पदा के दोहन शहरों में जलभराव के स्थान पर उचित निकास अनियमित बस्तियों तालाबों पर अवैध कब्जाकर आवासों का निर्माण, अन्धाधुन्ध सम्पर्क,कड़ी मार्गों के निर्माण के समय पानी निकास की अनदेखी पर ध्यान देना होगा। अब तक १ हजार से अधिक छोटे-बड़े अनियोजित बांधों के निर्माण की परम्परा रोकनी होगी,इससे कोई हल निकलता न दिख रहा है। बल्कि,यह कहूं कि अब तक की सरकारों के इस समस्या के हल के लिए किए गए प्रयास अपर्याप्त और अनियोजित हैं,तो कुछ गलत न होगा।
साथ ही,अब जब हमारी वैज्ञानिकता बहुत समर्थ हो गयी है। धरती से अन्तरिक्ष तक धमक है,तो मौसम और जलवायु सम्बन्धी भविष्यवाणियों सूचनाओं के आदान-प्रदान की तार्किकता और विश्वसनीयता पर ध्यान देना चाहिए। भारत में अनियन्त्रित व अनियमित वर्षा की दशा होने से इस सबका बाढ़ को नियन्त्रित करने अथवा किसी भी पूर्व तैयारी के लिए बड़ा रोल है।
दुनिया में बाढ़ की विभीषिका अनेक देश झेलते हैं,पर भारत अकेले २० प्रतिशत झेलता है। किसी भी देश से अधिक प्रभावित भारत के लोग होते हैं। गंगा सिन्धु और ब्रह्मपुत्र नदियों का तंत्र आधे भारत को प्रभावित कर देता है। यहां लगभग ३० लाख हेक्टेअर क्षेत्र प्रभावित होता है। प्रतिवर्ष हमारे यहां ३५ लाख हेक्टेअर की फसलें नष्ट हो जाती है। अधिक विनाश की स्थिति में यह आंकड़ा १०० लाख हे. तक पहुंच जाता है। औसतन हर साल १५०० लोग मारे जाते हैं और करोड़ों की धन और पशु सम्पदा का नुकसान होता है।
हर साल आने वाली बाढ़ प्राकृतिक है। अनियमित हैं,हमारे आर्थिक विकास की होड़ की अन्धी दौड़ से कई बार बनी विकराल भी है। ऐसा नहीं है कि,समाधान नहीं हो सकता। बस आवश्यकता है सही नीति और नियति से बनाई गई रणनीति को क्रियान्वित करने की। ऐसी परिस्थितियां पैदा करने की कि,बाढ़ की स्थिति ही पैदा न हो। आजादी के बाद बहुत समय बीत चुका है,हम किसी क्षेत्र में पिछड़े नहीं हैं। अतः,केन्द्र को राज्य सरकारों के साथ ही इसके लिए अधिकृत अधिकारियों,संस्थानों एवं संगठनों को कुछ ठोस व निर्णायक कदम उठाने चाहिए। दशकों से पीड़ितों की आँखों से आँसू अब तो पोंछ देने चाहिए।

परिचय–शशांक मिश्र का साहित्यिक उपनाम-भारती हैl २६ जून १९७३ में मुरछा(शाहजहांपुर,उप्र)में जन्में हैंl वर्तमान तथा स्थाई पता शाहजहांपुर ही हैl उत्तरप्रदेश निवासी श्री मिश्र का कार्यक्षेत्र-प्रवक्ता(विद्यालय टनकपुर-उत्तराखण्ड)का हैl सामाजिक गतिविधि के लिए हिन्दी भाषा के प्रोत्साहन हेतु आप हर साल छात्र-छात्राओं का सम्मान करते हैं तो अनेक पुस्तकालयों को निःशुल्क पुस्तक वतर्न करने के साथ ही अनेक प्रतियोगिताएं भी कराते हैंl इनकी लेखन विधा-निबन्ध,लेख कविता, ग़ज़ल, बालगीत और क्षणिकायेंआदि है। भाषा ज्ञान-हिन्दी,संस्कृत एवं अंगेजी का रखते हैंl प्रकाशन में अनेक रचनाएं आपके खाते में हैं तो बाल साहित्यांक सहित कविता संकलन,पत्रिका आदि क सम्पादन भी किया है। जून १९९१ से अब तक अनवरत दैनिक-साप्ताहिक-मासिक पत्र-पत्रिकाओं में रचना छप रही हैं। अनुवाद व प्रकाशन में उड़िया व कन्नड़ में उड़िया में २ पुस्तक है। देश-विदेश की करीब ७५ संस्था-संगठनों से आप सम्मानित किए जा चुके हैं। आपके लेखन का उद्देश्य- समाज व देश की दशा पर चिन्तन कर उसको सही दिशा देना है। प्रेरणा पुंज- नन्हें-मुन्ने बच्चे व समाज और देश की क्षुभित प्रक्रियाएं हैं। इनकी रुचि- पर्यावरण व बालकों में सृजन प्रतिभा का विकास करने में है।

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