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ग्रहों का असर-हमारे जीवन पर

योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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कहा जाता है कि ग्रह,नक्षत्र और राशि हमारे जीवन पर और प्रकृति पर भी असर डालते हैं। तब प्रश्न यह उठता है कि बहुत दूर पर स्थित ग्रह-नक्षत्र कैसे हमारे जीवन पर असर डालते हैं। अति व्यग्रता से हम सुबह अखबार का इंतजार करते हैं और आ जाने पर राशिफल पर भी नजर डाल ही लेते हैं।
भारतीय ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में ९ ग्रह गिने जाते हैं-सूर्य,चन्द्रमा,बुध,शुक्र, मंगल,गुरु,शनि,राहु और केतु। ये ग्रह सभी सूर्य,चंद्र के साथ-साथ प्रकाशित होते हैं और ये सभी पर एक-सा प्रभाव डालते हैं। जब ऐसा है तो फिर कुंडली देखने या ज्योतिष द्वारा व्यक्ति विशेष पर ग्रहों के अच्छे या बुरे प्रभाव का विश्लेषण करने की क्या आवश्यकता है ?
किसी नवजात की जन्म पत्रिका में यों लिखा जाता है-
‘आदित्यादि ग्रहा: सर्वे नक्ष्त्राणि च राशय:
आयु: कुर्वन्तु ते नित्यं यस्यैषा जन्मपत्रिका।’
अर्थात्, सूर्य आदि सभी ग्रह,नक्षत्र और सभी राशियाँ उसके लिए आयु प्रदान करें,जिसकी यह जन्म पत्रिका है।
चूंकि,सूर्य आदि सभी ९ ग्रह,सभी २७ नक्षत्र, सभी १२ राशियाँ जातक के जीवन पर प्रभाव डालती हैं,इसीलिए मानव के जीवन में इनका बड़ा महत्व है।
“सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं,उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करने में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं।”
इस बात को विश्वभर में लोग किसी-न -किसी रूप में मानते ही हैं।
सूर्य और चंद्र का प्रकाश धरती पर एक-सा पड़ता है,पर उसका प्रभाव भिन्न-भिन्न रूप में देखा जा सकता है। कहीं पर सूर्य के प्रकाश के कारण अधिक गर्मी है तो किसी ठंडे इलाके में उसके प्रकाश के कारण जीव-जंतुओं को राहत मिली हुई है। सूर्य का प्रकाश तो एक समान ही धरती पर प्रकाशित हो रहा है लेकिन धरती का क्षेत्र एक जैसा नहीं है। उसी प्रकाश से कुछ जीव मर रहे हैं तो कुछ जीव जिंदा हो रहे हैं। यदि हम यह मानें कि,एक क्षेत्र विशेष पर एक-सा प्रभाव होता है तो यह भी गलत है।
मान लें कि १०० किलोमीटर के एक जंगल में तूफान उठता है तो उस तूफान के चलते कुछ पेड़ खड़े रहते हैं और कुछ उखड़ जाते हैं, कुछ झुककर तूफान को निकल जाने देते हैं। इसी तरह जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है। इस सबके बीच धरती पर गुरुत्वाकर्षण की शक्ति का प्रत्येक क्षेत्र,प्रकृति और व्यक्ति पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। वह इसलिए कि प्रत्येक की प्रकृति अलग-अलग है।
इसी तरह समस्त ब्रह्मांड के ग्रह और नक्षत्र और उनकी अति सूक्ष्म हलचल का प्रभाव भी पृथ्वी पर पड़ता है। सूर्य और चंद्र के प्रभाव को तो प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है,लेकिन बहुत दूर होने के कारण गुरु और शनि का प्रभाव दिखाई नहीं देता है,इसलिए उसे नकारा जाना स्वाभाविक है।
वैज्ञानिक कहते हैं कि सूर्य के प्रभाव से ऊर्जा और चन्द्रमा के प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है। चंद्र का प्रभाव जल पर अधिक पड़ता है। मनुष्य के भीतर स्थित जल पर भी चंद्र का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। हमारा मस्तिष्क जल में ही डूबा हुआ है। प्रत्येक व्यक्ति के भीतर जल की स्थिति भिन्न-भिन्न होती है। इस भिन्नता के कारण ही उस पर दूसरे से अलग प्रभाव होता है।
वैज्ञानिक शोधों से यह पता चला है कि पूर्णमासी के दिन अपराध,आत्महत्या और मानसिक तनाव में बढ़ोतरी हो जाती है। समुद्र में मछलियों के व्यवहार में भी परिवर्तन आ जाता है। यह भी देखा गया है कि इस दिन शल्य चिकित्सा करने पर खून अधिक बहता है। शुक्ल पक्ष में वनस्पतियां अधिक बढ़ती है।
सन १९२० में बहुत काल के शोध के बाद यह बताया गया कि हर ११ साल में सूर्य में विस्फोट होता है जो १ हजार अणुबम के बराबर का होता है। इस विस्फोट के कारण धरती का वातावरण बदल जाता है। इसके कारण धरती पर उथल-पुथल बढ़ जाती है। इस दौरान लड़ाई-झगडे़,मार-काट अधिक होते हैं। युद्ध भी इसी समय में होता है। जब ऐसा समय शुरू होता है तो फिर इस समय को शांत होने में भी समय लग जाता है। इसी दौरान पुरुषों का खून पतला हो जाता है,वृक्षों के तनों में स्थित वलय के आकार बड़े हो जाते हैं। इस दौरान कई तरह के घटनाक्रम देखे जा सकते हैं। तो यह कहना गलत है कि ग्रह और नक्षत्रों का मानव जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
प्राचीन काल में हमारे ऋषि-मुनियों ने बहुत शोध,समझ और अनुभव के बाद यह जाना कि किस तरह प्रत्येक ग्रह और नक्षत्र का प्रभाव प्रत्येक मनुष्य पर कैसा होता है। सिर्फ ग्रह और नक्षत्रों का प्रभाव ही नहीं,हमारे आसपास की प्रकृति और वातावरण से भी जीवन में उथल-पुथल होती रहती है। उक्त सभी बातों को गहराई से समझने के बाद ही वास्तु अनुसार घरों का निर्माण होने लगा। योग और आयुर्वेद का सहारा लिया जाने लगा। नक्षत्रों की चाल समझकर मौसम का हाल जाना जाने लगा। जब धीरे-धीरे समझ बढ़ी तो ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने के अन्य उपाय भी ढूंढे जाने लगे। ज्योतिष जो उपाय बताते हैं,वे अनुभूत सत्य पर आधारित और शास्त्र सम्मत होते हैं।
अब मनीषियों ने कैसे इन ग्रहों को उपयोगी समझा,सप्ताह के सातों दिनों के नामों के निर्धारण की बात जानने से स्पष्ट होगा।
रविवार को सप्ताह का पहला दिन माना गया है। रविवार को रवि अर्थात् सूर्य का दिन जाना जाता है। इसीलिए इसका नाम रवि पर ‘रविवार’ पड़ा है।
रवि अर्थात् सूर्य का प्रभाव व कुप्रभाव भी मनुष्य के शरीर पर पड़ता है,जिससे निवारण के लिए व्रत-अनुष्ठान किया जाता है। बहुत लोग तो इस दिन नमक खाना छोड़ देते हैं। नवजात शिशु को नहलाकर भी स्वच्छ किया जाता है।रविवार की रात्रि समाप्त होते ही और सूर्योदय होते ही दिन ‘सोम’ अर्थात् चन्द्रमा का हो जाता है। सूर्य अपनी रोशनी के साथ प्रखर होता जाता है,जबकि चन्द्रमा शुक्ल-पक्ष के प्रथम दिन से शीतल प्रकाश के साथ छोटे रूप में प्रारंभ होकर पूर्णिमा के दिन पूर्ण आकार लेकर पूर्ण प्रकाशवाला पूरी रात के लिए हो जाता है,फिर भी वह ठंडा ही रहता है,क्योंकि उसका अपना प्रकाश नहीं है, उसके पास जो भी प्रकाश है वह सूर्य का है। इसीलिए भी वह रवि के बाद आता है, जिसे चन्द्रवार भी कहते हैं,लेकिन सूर्य और चन्द्र की गति निर्धारित है,इसीलिए हम किसी बात पर शुभ-वाच्य लिखते हैं ‘स्वस्तिपन्थामनु चरेम’। यह ऋगवेद की एक ऋचा का अंश है।
सोमवार के बाद ‘मंगलवार’ आता है और यह पृथ्वी से दिखते ग्रहों में सबसे दूर है और लाल रंग का है,जो शुभ माना जाता है और कल्याणकारी भी माना जाता है। मंगल भूमि के पुत्र, महान् तेजस्वी,जगत् को भय प्रदान करने वाले, वृष्टि करने वाले तथा वृष्टि का हरण करने वाले,मंगल (ग्रहजन्य) पीड़ा देनेवाले माने जाते हैं। इसीलिए विष्णु भगवान की आराधना में कहा गया है:
‘मंगलम् भगवान विष्णु मंगलं गरुढ़ध्वज:।
मंगलम् पुण्डरीकाक्ष: मंगलायतनोहरि:॥
मंगलवार के बाद ‘बुधवार’ आता है,जो बुध ग्रह के नाम पर है। बुध जगत् में उत्पात करने वाले,महान द्युति से संपन्न, सूर्य का प्रिय बनने वाले,विद्वान् तथा चन्द्रमा के पुत्र माने जाते हैं। अनुभव कहता है कि इस दिन कार्य में सफलता मिलती है।
बुध के बाद ‘गुरुवार’ श्रेष्ठ दिन माना जाता है। गुरु सर्वदा लोक कल्याण में निरत रहने वाले,देवताओं के मंत्री, विशाल नेत्रों वाले तथा अनेक शिष्यों से युक्त बृहस्पति हैं। इसीलिए यह दिन विवाह आदि शुभ कार्य के लिए पसंद किया जाता है। इसे वृहस्पतिवार भी कहते हैं। वृहस्पति देवताओं के गुरु माने जाते हैं,इसलिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। वैसे वृहस्पतिवार के शेषकाल में कार्यारंभ करने से सफलता की आशा कम रहती है।
‘शुक्रवार’ यानि शुक्र ग्रह पर इस दिन का नाम पड़ा है। शुक्र दैत्यों के मंत्री और गुरु तथा उन्हें जीवनदान देने वाले, तारा ग्रहों के स्वामी,महान् बुद्धिसंपन्न हैं। शुक्रवार या जुमा को इस्लाम धर्मावलंबियों का शुभ दिन माना जाता है। शुक्रवार को भी फल अच्छा मिलता है। शुक्र तारा से सभी परिचित हैं,जो सूर्योदय से थोड़े पहले या सूर्यास्त के थोड़े बाद में ही दिख पाता है।
अंतिम दिन ‘शनिवार’ है। इस दिन को बहुत जगह छुट्टी रहती है। विदेशों में तो सप्ताहांत के नाम से छुट्टी होती है। हिन्दू धर्मावलंबी इस दिन ‘शनि’ की पूजा करते हैं। ‘शनि’ भी एक ग्रह ही है। शनि सूर्य के पुत्र,दीर्घ देह वाले,विशाल नेत्रों वाले,मंद गति से चलने वाले, भगवान् शिव के प्रिय तथा प्रसन्नात्मा हैं।
इस तरह ग्रहों के नाम से हमारा प्रत्येक दिन पहचाना जाता है।
इसके अतिरिक्त राहु और केतु भी हैं, जो नवग्रह के अंदर गिने जाते हैं। राहु और केतु की क्षुद्र-ग्रहों में गिनती होती है।
ज्योतिष के अनुसार राहु-केतु को पापी ग्रह माना गया है। राहु-केतु शनि की तरह अनिष्टकारी परिणाम देने के लिए जाना जाता है।
राहु: विविध रूप तथा वर्ण वाले, सैकड़ों तथा हजारों आंखों वाले, जगत् के लिए उत्पातस्वरूप,तमोमय होते हैं।
केतु: महान् शिरा (नाड़ी) से संपन्न,विशाल मुख वाले,बड़े दांतों वाले,महान् बली,बिना शरीर वाले तथा ऊपर की ओर केश वाले शिखास्वरूप केतु होते हैं।
इस तरह ये ग्रह हैं- सूर्य,चंद्र,मंगल,बुध,
बृहस्पति,शुक्र,शनि। इसके अलावा हैं-राहु और केतु। इन्हें नवग्रह कहा जाता है।
आज विश्व भारतीय संस्कृति और धर्म को मान गया है,और हमारे विधानों पर वे विश्वास भी करने लगे हैं। भारत का योग अब विश्व में फैल गया है। २१ जून को ही विश्व योग-दिवस मनाया जाने लगा है। हमारी आयुर्वेदिक दवाओं पर भी वे भरोसा करने लगे हैं।

‘कोरोना’ महामारी के समय भारत में हुए कम नुकसान से वे भारत की ओर अभिप्रेरित हो रहे हैं और वह दिन दूर नहीं,जब भारत विश्व-गुरु फिर कहलाने लगेगा। आवश्यकता है कि हम अपने सुकार्यों से भारत का मान बढ़ाए रखें, तभी हमारा जीवन उच्च आदर्शों पर पला दिखता रहेगा।

परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”

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