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निवर्तमान वर्ष २०१९

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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हे वर्ष तुम्हारे विदा पर्व पर,कोटि-कोटि तुमको प्रणाम।
नमन तुम्हारा त्याग समर्पण,नेह निबन्धन नित निष्कामll
हे वर्ष तुम्हारी छाया में ही,जाने कितने मित्र मिले हैं।
सूख रहे थे पौधे उन पर,फिर से नूतन पुष्प खिले हैंll
जाने कितनी आशाओं ने,खुद को ही साकार किया।
नेह-स्नेह की प्रतिमा ने भी,एक नया आकार लियाll
किन्तु सत्य है कुदरत ने भी,खेल अनेकों खेले हैं।
पीड़ा के भी कैसे-कैसे,दंश सभी ने झेले हैंll
निर्धनता में कर्जों ने था,लीला कई किसानों को।
काश्मीर की घाटी ने भी,लीला कई जवानों कोll
कोटि-कोटि आँखों में वो,अपने आँसू छोड़ गए।
देश दुलारे अरुण जेटली,दुनिया से मुख मोड़ गएll
पुण्य धरा की बेटी सुषमा,जाने कैसे चली गईं।
उम्मीदें बहुत संजोई थी वे,पल में सारी छली गईंll
आदर्श मनोहर परिकर कैसे,पल में दुनिया छोड़ गया।
शेषन जैसा योद्धा भी तो,जग के बंधन तोड़ गयाll
शिल्पकार थी दिल्ली की,वो शीला भी तो नहीं रहीं।
खय्याम सरीखी सात सुरों की,फिल्मी हस्ती नहीं रहीll
जाने कितने अपने जन को,हे वर्ष तुम्हीं में खोया है।
किन्तु सृजन के बीजों को भी,निश्चित हमने बोया हैll
नक्सल या आतंकवाद की,कमर भी हमने तोड़ी है।
और विश्व पर छाप भी अपनी,बेशक हमने छोड़ी हैll
सत्ता भी परवान चढ़ी थी,और जीत का परचम था।
और अलग कुछ कर जाने का,दम भी था दमखम थाll
काश्मीर से तीन सौ सत्तर,मोम सरीखी पिघल गई।
देते तीन तलाक आज वो,अपराधों में बदल गईll
मंदिर-मस्जिद का झगड़ा जो,वर्षों वर्ष पुराना था।
न्याय मिला जो न्यायालय से,उसको सबने माना थाll
जो अतीत में कहा-सुना वो,इक-दूजे को माफ किया।
प्रभु राम के रामालय का,सहज सृजनपथ साफ कियाll
बेशक कुछ तो मुश्किल है,कुछ पीड़ा बहुत पुरानी है।
उनको ढोते रहने में यूँ,क्या कुछ आनी-जानी हैll
किन्तु यही विश्वास रहा है,अंत भला हो जाएगा।
भ्रष्टाचारी चढ़ता सूरज,ढलता है ढल जाएगाll
हे वर्ष तुम्हारा दोष नहीं है,न ही दोष हमारा है।
कालचक्र से कौन कहाँ कब,जीता है या हारा हैll
शांत सहज-सा जीवन था,हे वर्ष तुम्हारे दर्पण में।
सुख-दु:ख सारे काटे हमने,सीधे सत्य समर्पण मेंll
हे वर्ष तुम्हारे कृपाभाव से,हमको नेह जताना होगा।
किन्तु नियम है कालचक्र का,तुमको तो अब जाना होगाll
`बबुआ` पलकें भीगी मेरी,और अश्क सब तेरे नाम।
हे वर्ष तुम्हारे विदा पर्व पर,कोटि-कोटि तुमको प्रणामll

परिचय-ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है।आप लगभग सभी विधाओं (गीत, ग़ज़ल, दोहा, चौपाई, छंद आदि) में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।आप वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं ,पर बैंगलोर  में भी  निवास है। आप संस्कार,परम्परा और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश-धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। आपका मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य है,परन्तु लगभग ७० वर्ष पूर्व परिवार उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १ जुलाई को १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम.भी वहीं हुई है। आप ४० वर्ष से सतत लिख रहे हैं।काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं आपने लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर आप कई बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं। आप आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं। कर्नाटक राज्य के बैंगलोर निवासी श्री  अग्रवाल की रचनाएं प्रायः पत्र-पत्रिकाओं और काव्य पुस्तकों में  प्रकाशित होती रहती हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जनचेतना है।

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