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होली निहारूँ बाट

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…

गीता छंद विधान:२६ मात्रा(२२१२ २२१२ २२१२ २२१)१४,१२ पर यति,२ पद समतुकांत)

होली मचे फागुन रमें,फसलें रहे आबाद।
पंछी पिया कलरव करे,उड़ते फिरे आजाद।

मैं तो हुई बेचैन हूँ,मिलने तुम्हें पिव आज।
आओ प्रिये फागुन चला,अब तो सँवारो काज।

फसलें पकी हैं झूमती,मिल के करें खलिहान।
सखियाँ सभी है खेलती,बिगड़े हमारी शान।

आजा विदेशी पाहुने,खेलें स्वदेशी रंग।
साजन हमारे साथ हों,फरके पिया मम अंग।

कोयल सनेही बोलती,लागे अगन सुन गीत।
ये रंग भँवरे फूल पर,वह राग भी सुन मीत।

फागुन सनेही मीत है,तू मान मेरी बात।
कैसे बताऊँ भोर की,जो बीतती है रात।

कब तक निहारूँ बाट मैंं,साजन बने बे पीर।
नदिया बनीे आँखें बहे,अब पीव हम दो तीर।

मिलना लिखे हो भाग्य में,होली निहारूँ बाट।
कैसे मिलूँ मैं जीवती,पकड़ी मनो हूँ खाट।

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा है। आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) है। सिकन्दरा में ही आपका आशियाना है।राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन (राजकीय सेवा) का है। सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैं। लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैं। शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया है।आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः है।

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