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रूह का रंगरेज़

डाॅ. पूनम अरोरा
ऊधम सिंह नगर(उत्तराखण्ड)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…

कविता,जो प्रीत के साथ ही बी.ए. फाइनल ईयर में थी,ने कहा-
‘प्रीत! कौन सी किताब पढ़ रही है ? आज तू संस्कृत की कक्षा में भी नहीं आई। अब जल्दी चल,आज गृहविज्ञान की प्रयोगात्मक लैब में जाना है।’
तभी प्रीत को अहसास हुआ कि अरे! इतना समय बीत गया और मुझे आभास तक नहीं हुआ।
‘अरे हाँ कविता,रूक,लैब जाने के लिए सामान इकट्ठा कर लूं। सुई,धागा,कैंची,पेंसिल,चने की दाल बैग में रखकर सामने रस्सी पर सूखता सफेद सूती कपड़ा भी लपेटकर रखा। मैम ने पिछले हफ्ते की क्लास में कहा था कि कपड़ा धोकर लाना,धुले कपड़े पर रंग पक्के व चमकदार चढ़ते हैं।’
अर्चना मैम ने ‘बंधेज’ के डिज़ाइन बनाने सिखाए और बताया कि जो भी डिज़ाइन बनाना हो ,उसको कपड़े पर पेंसिल से बनाकर उतना हिस्सा पकड़ कर धागे से बाँध देंगे,ताकि जब हम कपड़ा रंगने के लिए रंग वाले पानी में डालें तो उस डिज़ाइन पर रंग न चढ़े। आज बंधेज की शुरूआत रूमाल बनाने से करेंगे,तभी मैम ने पिछली बैच की लड़कियों द्वारा बनाए गए रूमाल दिखाए,जो बहुत आकर्षक थे।
हमने भिन्न-भिन्न डिज़ाइन के रूमाल बाँधे, कुछ पेंसिल से डिज़ाइन बनाकर धागे से बाँधे और कुछ में चने की कच्ची दाल के दाने रखकर धागे से बाँधे। तभी मैम ने गैस के चूल्हे पर पाँच भगौनों में पानी उबालने को रख दिया। पानी उबलने पर एक में लाल,एक में हरा,एक में,पीला,एक में नीला और एक में रानी रंग अलग-अलग घोल कर डाल दिया।हम सभी ने अपने अपने रूमाल उसमें डालकर रंगे।
छात्रावास जाकर सुखाने के उपरांत धागे खोलकर जब रूमाल देखे तो उनकी सुन्दरता देख मन आह्लादित हो गया। तभी शिद्दत से उसकी याद आई। जब-जब वो छुट्टी में अपने घर आता तो काॅलेज आते-जाते पेड़ की ओट में खड़े होकर मुझे निहारता रहता। सोचा कि क्यूं ना,इनमें से सभी रंग का एक-एक रूमाल उसको तोहफे में दे दूँ। अगले दिन काॅलेज जाने के लिए पन्द्रह मिनट पहले ही छात्रावास से निकल गई। उसे खड़ा देख समीप गई,और उसे तोहफा दिया।
वो उन आकर्षक रूमालों को देखकर बोला-‘अब तुम ऐसा ही अपने लिए एक दुपट्टा बनाना,जिसका मूल रंग पीला रंगना,फिर उस पर डिज़ाइन बनाकर लाल रंग में रंगना। होली आने वाली है,होली के दिन वो दुपट्टा ओढ़कर अपने गालों पर लाल गुलाल लगाना। इस होली पर तुम्हारे गालों पर सबसे पहला रंग मेरे नाम का लगे,ताकि मेरी ज़िन्दगी तुम्हारे चमकते गालों की तरह हमेशा चमकती रहे।
होली के दिन उसकी पसंद का दुपट्टा ओढ़कर दर्पण के सामने खड़े होकर जब अपने हाथों से उसका दिया लाल गुलाल लगा रही थी,तो गालों पर उसी के हाथों का स्पर्श महसूस हुआ। लगा,वो पवित्र गंगा की गहराइयों में डूबकर मानो निहार रहा है। आँखों से गहरी प्रीत छलक रही है, जो मेरी रूह में समाती जा रही है। प्रीत के अंतःकरण से आवाज़ आई-ये ही मेरी रूह को रंगने वाला,मेरे जीवन का रंगरेज़ है।

परिचयउत्तराखण्ड के जिले ऊधम सिंह नगर में डॉ. पूनम अरोरा स्थाई रुप से बसी हुई हैं। इनका जन्म २२ अगस्त १९६७ को रुद्रपुर (ऊधम सिंह नगर) में हुआ है। शिक्षा- एम.ए.,एम.एड. एवं पीएच-डी.है। आप कार्यक्षेत्र में शिक्षिका हैं। इनकी लेखन विधा गद्य-पद्य(मुक्तक,संस्मरण,कहानी आदि)है। अभी तक शोध कार्य का प्रकाशन हुआ है। डॉ. अरोरा की दृष्टि में पसंदीदा हिन्दी लेखक-खुशवंत सिंह,अमृता प्रीतम एवं हरिवंश राय बच्चन हैं। पिता को ही प्रेरणापुंज मानने वाली डॉ. पूनम की विशेषज्ञता-शिक्षण व प्रशिक्षण में है। इनका जीवन लक्ष्य-षड दर्शन पर किए शोध कार्य में से वैशेषिक दर्शन,न्याय दर्शन आदि की पुस्तक प्रकाशित करवाकर पुस्तकालयों में रखवाना है,ताकि वो भावी शोधपरक विद्यार्थियों के शोध कार्य में मार्गदर्शक बन सकें। कहानी,संस्मरण आदि रचनाओं से साहित्यिक समृद्धि कर समाजसेवा करना भी है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘हिंदी भाषा हमारी राष्ट्र भाषा होने के साथ ही अभिव्यक्ति की सरल एवं सहज भाषा है,क्योंकि हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है। हिंदी एवं मातृ भाषा में भावों की अभिव्यक्ति में जो रस आता है, उसकी अनुभूति का अहसास बेहद सुखद होता है।

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