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होली के रंग

डॉ. गायत्री शर्मा’प्रीत’
कोरबा(छत्तीसगढ़)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…

रंगों से सब रंगे हुए थे,पर मन से हम रंग ना पाये।
उलझनें लेती अंगड़ाई,बात ये मन की कह न पाये।

शिकवे शिकायतें करते हैं,पल-पल में बेचैन हुए थे।
बेचैनी और जलन बढ़ी तो मन से हम न रँगे हुए थे।
टेसू दहके लाल रंग,जंगल में ठंडी आग लगाये,
रंगों से हम….॥

रंग की एक पिचकारी ले,मन रँगने का जतन कर रहे,
कुदरत के कैनवासों पर रंग भरने का यतन कर रहे।
हरसिंगार व महुवा फूले वासंती बयार चल जाये,
रंगों से हम…॥

मस्ती में डूबूं इतराऊं,ढोलक दे दे थाप बज रहे,
कैद हो गये मेल-मिलाप अब कदम बढ़े पर फिर रुक रहे ,
प्रीत की डोर बंधे तो रंगों से सराबोर हो जाये,
रंगों से सब रंगे हुए थे,पर मन से हम रंग ना पाये॥

परिचय-डॉ. गायत्री शर्मा का साहित्यिक नाम ‘प्रीत’ है। २० मार्च १९६५ को इन्दौर में जन्मीं तथा वर्तमान में स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ स्थित कोरबा जिले के विद्युत नगर में रहती हैं। आपको हिंदी भाषा का ज्ञान है। एम.ए. (अर्थशास्त्र) तक शिक्षित डॉ. शर्मा का कार्य क्षेत्र-गृहिणी का है,तो सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत अनेक सामाजिक संस्थाओं से जुड़ कर समाज के लिए कार्य करती हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं में पदों पर रहते हुए आप भारतीय कला,संस्कृति व समाज के लिए काम कर रही हैं। कई समाचार पत्र-पत्रिका में इनकी अनवरत रचनाओं का अनवरत प्रकाशन हो रहा है। सम्मान-पुरस्कार में विद्या वाचस्पति सम्मान, सुलोचिनी लेखिका पुरस्कार सहित कोरबा के जिलाधीश से सम्मान प्राप्त हुआ है तो कई संस्थाओं से भी अनेक बार अखिल भारतीय सम्मान मिले हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय स्तर की कई साहित्यिक व सामाजिक संस्थाओं से सम्मान,आकाशवाणी से कविता का प्रसारण औऱ अभा मंचों पर काव्य पाठ का अवसर प्राप्त होना है। डॉ. गायत्री की लेखनी का उद्देश्य-समाज और देश को नई दिशा देना,देश के प्रति भक्ति को प्रदर्शित करना,समाज में फैली बुराइयों को दूर करना, एक स्वस्थ और सुखी समाज व देश का निर्माण करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महादेवी वर्मा को मानने वाली डॉ. शर्मा कै लिए प्रेरणापुंज-तुलसीदास जी,सूरदास जी हैं । आपकी विशेषज्ञता-गीत,ग़ज़ल,कविता है।
देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“देश प्रेम व हिंदी भाषा के प्रति हमारे दिल में सम्मान व आदर की भावना होना चाहिए। मेरा देश महान है। हमारी कविताओं में भी देश प्रेम की भावना की झलक होनी चाहिए। हिंदी के प्रति मन में अगाध श्रद्धा हो,अंग्रेजी को त्याग कर हिंदी को अपनाना चाहिए।”

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