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महावीर के निर्वाण से प्रचलित हुई जैन परम्परा में दीपावली

डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
इन्दौर (मध्यप्रदेश)
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भारत देश धर्म प्रधान देश है,यहाँ की संस्कृति अहिंसा प्रधान है। इस देश में धर्म निरपेक्ष शासन प्रचलित है। त्यौहार हमारी संस्कृति एवं सभ्यता के प्रतीक हैं,इनका सम्बन्ध भी प्राचीन महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ा होता है। यहाँ पर धार्मिकता को लिए हुए अनेक पर्व मनाए जाते हैं। दीपावली पर्व को सारे देश में बहुत ही उत्साह-उमंग के साथ मनाया जाता है।
अधिकतर धर्म-सम्प्रदायों में इस त्यौहार को मनाने का कोई ना कोई उद्देश्य अवश्य है। वैष्णव मान्यतानुसार मर्यादा-पुरुषोत्तम रामचंद्र जी द्वारा दशहरे को रावण का वध करके इस दिन अयोध्या पधारने पर पुरवासियों ने दीपक जलाये थे,दीपावली उसी की स्मृति का पर्व है। एक उक्ति यह भी है कि इसी दिन श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया थाl भगवती दुर्गा देवी इस दिन अपने पतिगृह गई थी। अब से लगभग साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व सिक्खों के ६ठे गुरु श्री हरगोविन्दजी मुगल बादशाह की कैद से इसी दिन छूटे थे। आज से लगभग ११५-१२० वर्ष पूर्व आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्दजी सरस्वती ने तथा इतने समय पूर्व स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने शरीर त्याग किया था। इस प्रकार सभी धर्मों में अपनी अपनी अलग-अलग मान्यताएं हैं दीपावली पर्व को मनाने की।
जैन दर्शन में दीपावली पर्व को मनाने का अनूठा एवं तथ्यपरक इतिहास है। यह पर्व जैन धर्म में भगवान महावीर स्वामी से जुड़ा हुआ है। आज वर्तमान में कुछ लोग जानकारी के अभाव में जैन धर्म के संस्थापक भगवान महावीर स्वामी को मानते हैं,परन्तु जैन धर्म शाश्वत,अनादि निधन धर्म है। यह अनंतकाल तक रहेगा। जब-जब इस धरती पर हिंसा-अधर्म-अन्याय-अत्याचार ने अपना साम्राज्य जमाया,धर्म के नाम पर अनेक कुरीतियों का प्रचार बढ़ा,चारों ओर जनता त्राहिमान हो रही थी,संसार के सारे प्राणी आत्मरक्षा का मार्ग खोज रहे थे,तब दुखी पीड़ित विश्व को सहानुभूति का अन्तिम सन्देश देने,इस धरती पर फैल रहे अज्ञान-अन्धकार को नष्ट कर सही दिशा दिखाने वाले महामानव तीर्थंकरों ने जन्म लेकर प्राणी मात्र को सही राह दिखाई। जैन धर्म भगवान महावीर स्वामी से नहीं,यह तो प्रथम तीर्थंकर भगवान वृषभदेव द्वारा पुनः उद्घाटित हुआ।
जैन आगमों के अनुसार जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी हैं,जिनका जन्म कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ की महारानी प्रियकारिणी माता के गर्भ से हुआ। अपनी दिव्य वाणी से ३० वर्ष तक धर्मोपदेश देकर प्राणीमात्र का उद्धार किया। जीवन के अंतिम पड़ाव में बिहार प्रान्त की पावापुरी नगर में समस्त अघातिया कर्मों का नाश कर मोक्षधाम (सिद्धत्वपद) को प्राप्त किया। इन्द्रादि देवों ने आकर उनके मोक्ष कल्याणक की पूजा की। उस समय देवों ने बहुत भारी दैदीप्यमान दीपकों की पंक्ति से पावापुरी नगरी को सब तरफ से प्रकाशमय किया। तभी से आज तक प्रतिवर्ष दीप-मालिका द्वारा भगवान महावीर स्वामी की पूजा करने लगे। उसी दिन सायंकाल में भगवान के प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामी को केवलज्ञान रूपी लक्ष्मी की प्राप्ति हुई।
जैन मान्यतानुसार गणानां ईशः गणेशः गणधरः इस व्युत्पक्ति के अनुसार बारह गणों के अधिपति गौतम गणधर ही गणेश हैं। ये विघ्नों के नाशक हैं और उनके केवलज्ञान विभूति-लक्ष्मी की पूजा ही महालक्ष्मी की पूजा है। जैनागम में दीपावली पर्व मनाने का यह विशेष उद्देश्य है,जो मानवमात्र को आध्यात्मिकता का सन्देश देता है। जिस सथान से भगवान महावीर का निर्वाण हुआ,कहते हैं वहां श्रद्धालुओं ने आकर धूलि मस्तक पर लगाई और इतनी बहुसंख्या में लोग आए कि चुटकी-चुटकी मिट्टी लेने से वहां इतना गड्ढा हो गया कि उसने कालान्तर में सरोवर का रूप ले लिया। आज उसी सरोवर के बीच में महावीर स्वामी के निर्वाण के स्मारक के रूप में मंदिर बना है(जलमंदिर)।
महावीर प्रभु का निर्वाण दिवस आज दीपावली नामक महान पर्व बना। इसी दिन से वीर निर्वाण संवत् प्रारंभ हुआ और यह जैन मान्यतानुसार वर्ष का पहला नया दिन लेकर आता है।

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