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देवी

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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जब भी इतवार का दिन होता है। बच्चे सुबह-सुबह ही आकर बरामदे में लगे हमारे झूले पर झूलने आ जाते हैं। आज भी ऐसा ही हुआ। यश और निकिता दोनों भाई-बहन झूला झूल रहे थे,अचानक किसी बात पर दोनों में लड़ाई हो गई। यश ने निकिता को चांटा मार दिया और निकिता रोने लग गई। मैं रसोई में खाना बनाने की तैयारी कर रही थी। मैंने कहा,-“यश! कन्याओं को नहीं मारते। वे देवी का रूप होती हैं। तभी तो नवरात्रि में हम कन्याओं को भोजन कराते हैं,पूजते हैं। कन्याओं को हाथ लगाना पाप है। हर औरत देवी का अवतार है। हमें उनका आदर-सम्मान करना चाहिए।”
कुछ सोचकर निकिता बोली,-“आंटी! फिर तो मेरी मम्मी भी देवी का रूप हैं।”
मैंने कहा,-“और क्या बिल्कुल?”
मेरी बात सुनकर वह भागती हुई अपने घर गई और अपने पापा से बोली,-“पापा! यश ने मुझे मारा तो आंटी ने कहा कि,कन्याओं को मारते नहीं,वो देवी का रूप होती हैं। क्या यह सच है ?”
पापा ने कहा,-“यह सच है।”
फिर वह बोली,-“और आंटी जी यह भी कह रही थीं कि हर औरत देवी का अवतार है। वह पूजनीय है।”
“हाँ! हाँ! सब सच है।” पापा ने टालते हुए कहा।
“तो पापा कल जब मम्मी ने आपसे पीने के लिए मना किया तो आपने मम्मी को मारा क्यों… ?”

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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