डॉ.अनुराधा शर्मा,
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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उसूल ये है,के जो हक है बस वही कहिए,
मेरी खता को भी तकसीरे आग ही कहिए।
खुदा गवाह बहुत दिन जिये हैं दुनिया में,
मगर वो बात न थी जिसको जिंदगी कहिए।
तबाह हो गए लेकिन जुबाँ नहीं खोली,
अब इसको सब्र समझिए कि बेबसी कहिए।
चिराग जलते रहें और ना सूझे हाथ को हाथ,
अंधेरे कहिए इसे या के गुमरही कहिए।
ना कोई आस,ना अरमां,न ऐश है न निशान,
मगर वह कहते हैं इसको भी जिंदगी कहिए।
ना कद्रे इश्क ना कोई खुलूस
का इनआम,
इसे खराबिये-तकदीर अपनी कहिए॥