कुल पृष्ठ दर्शन : 214

You are currently viewing ऊँची सोच

ऊँची सोच

रोहित मिश्र
प्रयागराज(उत्तरप्रदेश)
***********************************

रवि-‘अरे यार क्या पढ़ाई कर रहे हो ? आज तो मास्टर जी भी नहीं आए हैं।’
सुनील-‘ऐसे ही किताब देख रहा था।’
रवि-‘अरे यार ज्यादा पढ़ाई करने से क्या फायदा ? बस सरकारी नौकरी मिल जाए बस…भले ही वो चपरासी की ही क्यों न हो…!’
बगल में सीनियर विद्यार्थी खड़ा था,तो सुनील ने रवि से कहा,-‘आओ भर्ईया से कुछ जानकारी ली जाए…।’
दोनों ही अपने सीनियर के पास गए।
रवि-‘भर्ईया क्या चपरासी की नौकरी खराब होती है ? काम तो काम हो…बड़ा हो या छोटा…!
सीनियर विद्यार्थी ने रवि की बातो को गौर से सुना और उसने दोनों से ही कहा…-‘कोई काम खराब नही होता है,पर सोच हमेशा ऊँची रखनी चाहिए। चपरासी की ही नौकरी क्यों ? आईएएस,पीसीएस की नौकरी क्यों नहीं करोगे ?’
सीनियर विद्यार्थी-‘दोनों लोग मेरी बात ध्यान से… सुनो…सोच हमेशा ऊँची रखो…जब भी सोचो ऊँचा सोचो…परिस्थिति चाहे जैसी भी हो,सोच को कभी छोटा मत होने दो…छोटा सोचोगे तो छोटा बनोगे… ऊँचा सोचोगे तो ऊँचाईयों की बुलंदियों को
छुओगे।’
रवि को ये बात समझ में आ गई,यानि उसके दिमाग में अच्छी तरह बैठ गई। सीनियर विद्यार्थी की बातों से उसे आईएएस,पीसीएस की तैयारी करने की
‘प्रेरणा’ मिली। अब उसने फैसला कर लिया कि वह अधिकारी श्रेणी की नौकरी की तैयारी के लिए पढ़ाई करेगा,न कि चपरासी की नौकरी के लिए।

Leave a Reply