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मधुमक्खी

डॉ. हंसा दीप
टोरंटो (कैनेडा)
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बेबी सीटर हेज़ल जब से आने लगी है,घर का माहौल ही बदल गया है। बेबी भी बहुत ख़ुश है। जितने प्यार से हेज़ल लोरी सुनाती है, गाती है,बेबी नव्या मुस्कुराती हुई सो जाती है। उसके सोने के बाद भी कमरे के माहौल में वह गाना देर तक गूँजता रहता है। प्यार और मिठास से भरी वह ध्वनि बच्चे के पालने से लेकर घर के कोने-कोने में पहुँचती और जैसे प्रतिध्वनित होती। हेज़ल के वे सुरीले गीत बेबी की खास पसंद थे।
बेबी नव्या की मम्मी सोमी को हेज़ल बहुत अच्छी लगती थी। एक तो वह बेबी का बहुत ध्यान रखती थी,पूरे दिन के छ: से सात घंटे नव्या के साथ रहती और हर आधे घंटे की गतिविधि का लेखा-जोखा रखती थी। बेबी ने कब-कब,क्या-क्या किया,दूध-पानी,पी-पू, झपकी,अंदर-बाहर खेलने का समय आदि सारी बातों की अकाउंटिंग बिना नागा होती थी,ताकि माँ जब आए तो देख ले कि दिनभर में बेबी की गतिविधियाँ समयानुसार थीं। हेज़ल का ऐसा सुव्यवस्थित काम तारीफ़े क़ाबिल था। एक सुकून मिलता था कि आज भी दुनिया में अपने काम को इस तरह संतोषप्रद ढंग से करने वाले लोगों की कमी नहीं है।
दूसरा,हेज़ल बहुत ही मृदुभाषी थी। अपनी बातों से लोगों का दिल जीतने की कला में माहिर थी वह। हर छोटी-छोटी बात के लिए नव्या की और नव्या की मम्मी सोमी की तारीफ़ सुनना सोमी के लिए बहुत ऊर्जावान होता था। इस वजह से वह घर में जो भी कुछ नया पकाती,बनाती या फिर खरीदती हेज़ल की राय ज़रूर लेती। घर से काम के लिए निकलते समय और वापस लौटकर सोमी उससे बात करने का समय खोजती रहती,ताकि अपनी तारीफ़ के पुल बंधवा सके। एक नहीं,कई-कई बार पूछती एक चीज़ के बारे में,चाहे वह कोई खाने की चीज़ बनाई हो या फिर पहनने की कोई नई चीज़ लायी हो।
“देखो,आज मैंने ये वेजी पकौड़े बनाए हैं, चखो और बताओ कि कैसे बने हैं।”
“क्या बात है,इतने अच्छे स्वादिष्ट पकौड़े मैंने पहली बार खाए।”
“और ले लो न हेज़ल,यहाँ तो हम दो ही हैं खाने वाले,इतने तो काफी हैं हम दोनों के लिए।”
“कसम ख़ुदा की सोमी जी,आपका जवाब नहीं,आपके इन हाथों का करिश्मा तो मेरे अंदर तक बस गया है।”
“तुम्हें अच्छे लगे तो अच्छे-से खाओ हेज़ल, अपने शौहर के लिए भी लेकर जाओ।”
“हाँ ज़रूर,अगर आपके पकौड़ों से मेरे शौहर की सुबह होगी तो सारा दिन तो माशा अल्लाह बहुत अच्छा ही बीतेगा।”
सोमी की दरियादिली और हेज़ल की मिठास दोनों मिलकर उनके आपसी रिश्तों को मजबूत कर रहे थे। कभी-कभी ही ऐसा होता है कि काम करवाने वाला और काम करने वाला दोनों एक-दूसरे से संतुष्ट रहते हैं,ख़ुश रहते हैं। हेज़ल ने बताया था सोमी को कि पिछले घर में जहाँ वह काम करती थी,वहाँ की यादें कड़वी थीं। जिस बच्चे को सम्हालती थी,उसके माता-पिता हर बात में बहुत टोका-टोकी करते थे,मीन-मेख निकालते थे। कभी कहते थे कि “बच्चा बहुत दुबला हो रहा है” तो कभी कहते थे कि “तुम फोन पर अधिक बात करती रहती हो।” हेज़ल का कहना था कि “आप ही बताइये सोमी जी, अगर कोई फोन आता है तो उसका जवाब तो देना ही पड़ेगा न।”
“हमारा अपना भी तो घर है,जहाँ से दिनभर में कोई जरूरी बात हो तो फोन करना ही पड़ता है।”
कई बार खाने-पीने की चीज़ों को लेकर भी उससे पूछताछ होती थी,जिससे उसके अहं को चोट पहुँचती थी। उसके बाद तो हेज़ल ने नियम बना लिया था कि जिस भी घर में काम करेगी,वहाँ का पानी तक नहीं पीएगी। पानी की बोतल भी उसके साथ होती तो सोमी को कहना पड़ा था कि-“पिछली बातों को भूल जाओ हेज़ल,अब न वह घर है,न वह दुबला होता बच्चा है,न वे माता-पिता हैं।”
“जी सोमी जी,आप इतना मान देती हैं तो बहुत अच्छा लगता है,मान से ही तो मान बढ़ सकता है न,किसी का खाकर कोई कितने दिन निकाल सकता है भला।”
सोमी को कोफ़्त होने लगती उन लोगों की विचारधारा पर,जो अपने जिगर के टुकड़े, अपने बच्चे को तो बेबी सीटर के हवाले कर देते हैं और घर की बेजान चीज़ों की चिन्ता करते हैं। अंदर ही अंदर कुड़कुड़ाती-“लोग भी न बड़े बेरहम हो जाते हैं,किसी के काम की सराहना करना नहीं आता है तो न सही पर कम से कम उसके काम का अपमान तो न करे।” अपने और हेज़ल के रिश्ते के बारे में सोच-सोच कर सोमी के दिल में हेज़ल के लिए और भी सहानुभूति बढ़ती,और भी उसके लिए दिल में जगह बनती,ताकि वह कल और आज के बीच का अंतर समझ सके।
वह दिन भी याद है सोमी को,जब उसका अपने हाथों से बुना एक नया स्वेटर बन कर तैयार हुआ था-“कितनी बड़ी टेलेंट है आपके पास सोमी जी,सच कहूँ, मैं तो तरस जाती हूँ इन हाथ की बनी चीज़ों के लिए। काश ऐसा हुनर मेरे पास होता।”
“अरे ऐसी क्या बात है हेज़ल,मैं एक स्वेटर बना कर दूँगी तुम्हें।” और सोमी ने एक स्वेटर बना कर दिया था,सिर्फ उस तारीफ़ की वजह से जो उसे यदा-कदा मिलती रहती थी वरना उसके पास कहाँ समय था इन सारे कामों के लिए। हर,तीज-त्योहार पर,हर जन्मदिन और सालगिरह पर कोई बड़ा कार्यक्रम हो न हो,परन्तु हेज़ल को ज़रूर बुलाया जाता। वह नव्या के लिए छोटे-मोटे खिलौने लेकर आती और अपना और अपने शौहर दोनों लोगों का खाना साथ लेकर अपने घर जाती। ढेरों आशीर्वाद देकर जाती। जितना ले जाती,उसकी तो सोमी के लिए कोई कीमत नहीं होती लेकिन वे सारे उसके अमूल्य आशीर्वाद उसे बहुत अच्छे लगते। हेज़ल की वह मीठी बोली उसके जाने के बाद भी सोमी के कानों में गूँजती रहती। इतनी मीठी कि बात करके एक नई ताकत मिलती थी आत्मविश्वास से भरी।
हेज़ल के रहते ऑफिस से लौटते हुए सोमी को कभी यह चिन्ता नहीं सताई कि दस मिनट लेट हो रही है या सब-वे में आधा घंटा देरी हो गई,इत्मीनान था कि हेज़ल है घर पर। बच्चे की ओर से तसल्ली हो तो माँ अपना पूरा ध्यान काम में दे सकती है। अपने कई मित्रों से मिले अरसा हो गया था,उनसे मिलने का भी समय मिल जाता सोमी को। विश्वास से विश्वास जन्मता है,हेज़ल पर ऐसा विश्वास जमा था कि शक की कोई हल्की-सी लकीर भी नहीं थी दिल के किसी कोने में। नव्या के साथ-साथ घर की हर चीज़ उसके साए में मुस्कुराते हुए ही नज़र आती।
हेज़ल के साथ दिन-भर खेलती-खिलखिलाती नव्या बड़ी हो रही थी। बेबी सीटर तो एक तरह से दूसरी माँ ही हो जाती है। चाहत के बिन्दु उससे जुड़कर नए आकार बना लेते हैं। बच्चे के अपने आकार और माता-पिता के अपने नए रिश्तों को नए आयाम देते हुए। यूँ हेज़ल के साथ बड़ी होती नव्या अब स्कूल जाएगी। उसके स्कूल जाने की खुशी में तो सोमी बहुत खुश है,परन्तु इस बात का बहुत दु:ख है कि अब हेज़ल नहीं आएगी। बेबी सीटर की अब ज़रूरत रही नहीं। भरे मन से उसे विदा किया तो दोनों की आँखों में आँसू थे।
“बहुत याद आएगी तुम्हारी हेज़ल,आती रहना।”
“हाँ,बिल्कुल बेबी को देखने तो आऊँगी ही मैं।”
उस दिन जो हेज़ल गई तो उसके बाद न उसकी कोई ख़बर आई,न ही फोन आया।
एक दिन बाज़ार में नव्या के पापा से टकराई थी तो कह रही थी कि-“उसे एक घर में बेबी सीटिंग के लिए काम मिल गया है,इसलिए समय नहीं मिल पाता। हाँ आपकी,बेबी की बहुत याद आती है,क्योंकि नया घर आपके घर जैसा नहीं है। न तो बच्चा और न ही बच्चे की माँ।”
सोमी को यह सुनकर बहुत अच्छा लगा, कहने लगी-“अब हर घर तो ऐसा नहीं हो सकता,न ही हर बेबी सीटर हेज़ल जैसी हो सकती है। बेचारी हेज़ल को हमारे घर आने के पहले भी ऐसा ही घर मिला था और हमारे घर से जाने के बाद भी अच्छा घर नहीं मिला।”
दिन निकलते रहे। एक दिन सोमी अपनी मित्र सुशी के बच्चे के जन्मदिन की पार्टी में गई,बहुत धूमधाम थी वहाँ। लोग आ रहे थे, जा रहे थे। जिस बच्चे के जन्मदिन की पार्टी थी,वह अभी अपनी दोपहर की झपकी ले रहा था। सोते हुए बच्चे को उसे सम्हालने वाली मैड के पास छोड़कर माता-पिता अपने आने वाले मेहमानों का ध्यान रख रहे थे। बहुत खुश थे वे,सुशी के पति कहने लगे- “क्या कहूँ सोमी जी,इतनी अच्छी बेबी सीटर मिली है कि हमें अब बेबी की कोई चिन्ता ही नहीं रहती।”
“यह तो है,मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था जब नव्या की बेबी सीटर उसके साथ थी। मेरी नव्या भी इस मामले में काफी लकी थी, क्योंकि उसकी बेबी सीटर भी बहुत अच्छी थी।”
“एक बार उसके आने भर की देर होती है उसके बाद तो वह सब कुछ सम्हाल लेती है। कपड़े तह कर देती है,झाड़ू भी लगा देती है। बेचारी इतनी अच्छी है कि मेरा तो दिल करता है कि उसे सदा के लिए रख लूँ, क्योंकि इतने अच्छे लोगों को भी कई बार अच्छे एम्प्लायर नहीं मिलते तो जीवन बरबाद हो जाता है। बेचारी पिछली बार ऐसे ही एक घर में फँस गई थी,जहाँ उन लोगों ने उसे बहुत परेशान किया।” सुशी पूरी जानकारी देकर शायद यह बताना चाह रही थी कि बेबी सीटर उनके बहुत करीब है,वह हर बात उन्हें बता देती है।
“अच्छा,कुछ लोग होते ही हैं ऐसे। उन्हें यह समझ नहीं आता कि उनका बच्चा उस बेबी सीटर के पास पूरा दिन गुज़ारता है,कम से कम उसके साथ तो अच्छा व्यवहार करे।” सोमी को अपने व हेज़ल के मधुर संबंधों की मीठी कड़ी याद आ जाती है,जब वे कितने अपनेपन के साथ रहते थे।
“वे न तो उसे चाय देते थे न कुछ खाने को। एक-एक बात जब उसने बताई तो लगा कि कितनी स्वार्थी दुनिया है यह।
“इसी शहर की बात है या वह किसी और शहर की बात कर रही थी?”
“हाँ,नाम-वाम तो नहीं बताया उसने और न ही मैंने पूछा पर कह रही थी यहीं नॉर्थ यार्क में जाती है,शायद यहीं नॉर्थ यार्क सब-वे के पीछे।”
मेहमानों का आना-जाना बढ़ा तो सुशी चली गई। पता सुनकर सोमी को लगा कि कहीं यह हेज़ल तो नहीं,क्योंकि यही सोमी भी अपने पते में लिखती थी-एल्मवुड एवेन्यू, नॉर्थ यार्क। उसका अपनी घर भी तो नॉर्थ यार्क सब-वे के पीछे ही है। नहीं, सोचते-सोचते वह कुछ ज़्यादा ही दूर निकल जाती है। नॉर्थ यार्क बहुत बड़ा है और फिर उसके तो हेज़ल से बहुत अच्छे संबंध थे। अपने आलतू-फालतू ख़्यालों को विराम देकर वह जन्मदिन समारोह की ओर ध्यान देने लगती है।
थोड़ी देर में केक कटने वाला था। बेबी अभी तक सोया था। सब इंतज़ार कर रहे थे कि बेबी आए,केक कटे और सब एक औपचारिकता निभा कर घर जाएँ। सुशी को अंदर जाकर उठाना पड़ा बेबी को। दो मिनट में ही वह बेबी के साथ बाहर आ गई। सोमी बेबी को देखे,उसके पहले उसकी नज़रें उसके साथ चल रही हेज़ल पर टिक गईं। उसकी अपनी नव्या की बेबी सीटर। तो यह है सुशी की बेबी सीटर और यह जिस पुराने घर की बात कर रही थी,वह कहीं सोमी का ही घर तो नहीं था।
सोमी को काटो तो खून नहीं। हेज़ल तो बहुत खुश थी सोमी के साथ। अभी भी वह स्वेटर हेज़ल ने पहना हुआ था,जो सोमी ने बस में और ट्रेन में आते-जाते सफ़र करते हुए बनाया था।
उसके कानों में सुशी के वे शब्द गूँजने लगे- “बहुत परेशान करते थे,न चाय देते थे न खाना।”
“क्या,लेकिन वह तो ख़ूब स्वाद ले-लेकर खाती थी।”
सोमी मेहमानों के पीछे थोड़ा छुप कर देखती रही हेज़ल को। वही अंदाज़ वही शैली,सुशी के बच्चे की,केक की,सुशी की,उसके बेबी की और भी सब चीज़ों की तारीफ के पुल बाँधे जा रही थी। सोमी अब उससे बगैर मिले जल्दी से जल्दी घर जाना चाहती थी,वरना नव्या उसे पहचान लेती।
एक बच्चे का विश्वास बना रहे उस प्यार पर जो उसे मिला था। किसी एक से प्यार पाने के लिए किसी दूसरे की बुराई करना जरूरी नहीं। उसे अपना समझा था,उससे अपनापन मिला भी था तो फिर क्या हुआ। जगह बदलते ही रिश्ते भी कैसे बदल गए। ये ही सारी बातें तो हेज़ल ने सोमी को बताई थीं जब वह नव्या की देखभाल कर रही थी कि सोमी से पहले जिस घर में काम करती थी वे लोग बहुत ख़राब थे। उसकी वे सारी बातें भी ठीक उसी तरह याद आने लगीं,दुबला होता बच्चा,खाने-पीने की खत्म होती चीजें,ये-वो सब कुछ। तो यह सब एक बना-बनाया ताना-बाना था,एक सुनियोजित तंत्र था जो हर नए घर में प्रवेश होते ही दोहराया जाता था,अपनत्व पाने का एक नायाब तरीका! ऐसा तरीका जिसने सोमी को स्वयं अपनी नज़रों में गिरा दिया था। उसे ख़ुद पर तरस आने लगा कि कितनी बड़ी बेवकूफ है वह, ऐसे कैसे इतनी मीठी बातों को हजम कर लेती थी,इस उम्र में भी इंसान की पहचान नहीं है उसे। कोई उसके घर में आकर उसके, बच्चे की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर गया और उसे पता ही नहीं चला।
वे लम्हे वे पल याद आने लगे,जब हेज़ल के जिम्मे सब-कुछ छोड़ कर चली जाया करती थी। वह विश्वास तो टूटा ही,पर किसी पर विश्वास करने की भावना आहत हो गई इस कदर कि अब दोबारा किसी पर विश्वास करने में हज़ार बार सोचना पड़ेगा। अपनी तारीफ़ में बाँधे गए वे पुल ढह गए,साथ ही बहा ले गए मानवीयता के रिश्तों की कहानी। सब-कुछ खोखला लगा। वह स्वेटर जिस पर सोमी की ऊँगलियों ने कितने जतन से ऊन के गोले से निकलते हर रेशे को,हर भाग को छुआ था,बुना था और हेज़ल को दिया था। सुशी के शब्द कानों में फुसफुस कर रहे थे- “कुछ नहीं देती कभी। खाना तो बनाना ही नहीं आता उसे। आपके हाथों में तो जादू है।”

सोमी को लगा जैसे एक के बाद एक डंक मारे जा रहे हों उसे। वह महीनों तक मधुमक्खी के उस छत्ते के पास रह चुकी थी जो शहद से सराबोर था। हेज़ल खूब मीठी थी पर वह मिठास अब उस छत्ते की याद दिलाती,जिस पर मधुमक्खी बैठ कर ताउम्र शहद खाती है पर अपना काटने का स्वभाव नहीं छोड़ती,डंक ही मारती है।

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