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कैसे कटेंगे अब पहाड़ से ये दिन

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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जिंदगी कट रही देखो गिन-गिन
कैसे कटेंगे अब पहाड़ से ये दिन,
कई महीनों से पसरा सन्नाटा है-
कोरोना से हुआ सब छिन्न-भिन्न।

छोटे-बड़े सभी व्यापारी परेशान
आमदनी बंद हुई,बढ रहा ॠण,
स्कूल-कालेज की ठप है पढ़ाई-
बच्चे-बड़े-शिक्षक सभी गमगीन।

मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे भी बंद हैं
मन में प्रभु याद आते हैं निश-दिन,
कयामत सा हो रहा एहसास-
माहौल भारी और लगता संगीन।

मजदूर गरीब आम आदमी सोचे
कैसे कटेंगे अब पहाड़ से ये दिन,
बे-नूर हुआ है देखो सारा यह जग-
जल्दी लौट आए वो रौनक रंगीन।

भय का माहौल बढ़ रहा है रोज
जल्दी से आ जाए कोई वैक्सीन,
हर दिन लगता है मानो हो पहाड़-
सोचने की क्षमता हुई जीर्ण-शीर्ण।

प्रभु करेंगे सब ठीक बहुत जल्दी
थाम रखो एक दूजे को हमनशीनl
सभी सावधानियां रखो अवश्य ही,
कट जाएंगे ये भी पहाड़ से ये दिनll

परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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