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चंचल मन

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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चलायमान चंचल मन,
हवा की वेग से उड़ता है
बांझ के बेटे की तरह,
ये मन मुझे छलता है।
पाँव नहीं इसके मगर,
फिर भी ये चलता है
पाने को माया खिलौना,
हर पल ये मचलता है।
ख़ुशी में फूल जाता है,
आए दु:ख तो जलता है
सवेरे की लाली कभी,
कभी शाम से ढलता है।
इच्छाओं के आँचल तले,
बच्चा-सा ये पलता है
चढ़ जाता है ये सर पर,
तो,कभी हाथ मलता है।
तृष्णाओं के मरुस्थल में,
मन मृग-सा भटकता है
अपनी ही शांति की सीता,
बन ख़ुद रावण हरता है।
कभी शेर-सा दहाड़ता है,
कभी गीदड़-सा डरता है
अपने बनाएं चक्रव्यूह में,
ख़ुद अभिमन्यु-सा फंसता है।
‘प्रीत’ की चाहत में ये मन,
हमेशा स्वयं से लड़ता है॥

परिचय-श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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