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सजा में सालों लग जाएं तो विश्वास डगमगाएगा ही

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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सुबह जैसे ही टी.वी. खोलते ही लोगों ने हैदराबाद के चारों बलात्कारियों के मुठभेड़ में मारे जाने का समाचार सुना,तो पूरे देश में खुशी व उल्लास का वातावरण छा गया। ऐसे वीभत्स कांड के इतनी जल्दी पटाक्षेप ने जनमानस में आशा का संचार कर दिया। १६ दिसम्बर को `निर्भया` कांड को ७ साल पूरे हो जाएंगें। इतना शोर, हाय-तौबा के बाद तथाकथित सख्त कानून बना,पर आज भी फाँसी नहीं हो रही है। कानूनी दांव-पेंच,औपचारिकताओं के जाल में लटका यह प्रकरण कितना समय औऱ ले ले,नहीं पता। ऐसे में लोगों का न्याय व्यवस्था,प्रशासन से विश्वास उठना स्वाभाविक ही है। एकदम
अप्रत्याशित तथा इस त्वरित ‘न्याय’ पर उजागर प्रसन्नता ने कई प्रश्नों को जन्म दे दिया है। १० प्रतिशत मुठभेड़ ही सत्य प्रतीत होती हैं,पर सवाल सब पर उठते हैं। इस पर भी उठे,उच्चतम न्यायालय भी इसे देख रहा है। तंत्र से नाउम्मीदी तो अराजकता ही बढ़ाएगी। आम जनता जल्द न्याय चाहती है,कानूनी प्रक्रिया से पर,समयबद्ध। आरोपियों की दोष स्वीकार्यता के बाद भी सालों-साल लग जाएं तो विश्वास तो डगमगाएगा ही। यह समाज,प्रशासन,व्यवस्था सबकी विफलता है।
आज हम लड़की के आने-जाने,पहनावे,व्यवहार पर अंकुश रखते हैं,उनकी बाध्यताएं भी हैं,मर्यादा भी,पर लड़कों के लिये यह जरूरी क्यों नहीं ? लड़की ८ बजे रात तक आए तो प्रश्नों के घेरे में,लड़का रात को १ बजे भी शराब पी कर आ रहा है तो कोई बात नहीं। कई मामलों में तो माता-पिता को थाने से फोन आने पर पता चलता है,जब वो ऐसे ही किसी प्रकरण में सलिंप्त होता है,तब भी माँ-बाप उसकी कारगुजारियों को दरकिनार कर बचाने में लग जाते हैं। ऐसे माँ-बाप आज तक नज़र आये,जिन्होंने यह कहा हो कि यदि यह दोषी है तो कानून को अपना काम करने दो,हमारा कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। नारी की कोख से जन्मी मानव जाति नारी की ही दुश्मन,उसे नोंच खाने को तैयार।
कैसी विडंबना है ? जब `निर्भया` कांड हुआ तो कांग्रेस सरकार थी,इस भाजपा सरकार ने तब तो बड़ी-बड़ी बातें कहीं,कैसी-कैसी दुहाइयाँ दी और सत्ता के छठे साल में मामला ज्यों का त्यों हैं। सब अपनी-अपनी रोटियां सेंक रहे हैं,जनता रूपी द्रौपदी की किसी को चिंता नहींl दुर्योधन,दुःशासन हर तरफ भरे पड़े हैं,यहां तक कि यौन शोषण व बलात्कार के आरोपी रहे आज सांसद व विधायक भी हैं।
हैदराबाद की घटना बस एक अपवाद ही बने,यदि सरकार में थोड़ी-सी भी गर नैतिकता व शर्म है तो,जल्द से जल्द बलात्कार के मामलों का निपटारा एक से तीन माह के भीतर निपटाने का सख्त कानून पारित कराए,अब तो पूर्ण बहुमत है,बहाना भी क्या लगाओगेl इच्छाशक्ति का शोर बहुत मचाते हो,
कुछ कर के भी दिखाओ।
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा इस बार भी सख्त कानून बनाने को ले कर आमरण अनशन पर बैठीं,सात साल पहले भी माँ भारती की इस बेटी ने
आमरण अनशन किया थाl तब आश्वासनों के खट्टे बेरों के झांसे में आई बेटी को क्या मालूम था,तस्वीर में कोई बदलाव नहीं आएगाl ५ साल महिला व बाल कल्याण मंत्री रही मेनका गांधी ने क्या किया। महिला हो कर भी महिलाओं के दर्द को समझा ?अब उल्टे मुठभेड़ पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि एक `निर्भया` प्रकरण में विलम्ब हो गया तो ऐसे ही मार दोगे। अरे! तुमने तो `निर्भया` कोष का पैसा भी सही से इस्तेमाल नहीं किया।
आज जरूरत है कि यौन शोषण व बलात्कार के आरोपियों का हर हाल में सामाजिक बहिष्कार हो,सख्त से सज़ा जल्द से जल्द हो,माँ-बाप भी ऐसी
संतान से मुँह फेर लें,संपत्ति से बेदखल कर दें,तब ही समाज की दशा भी बदलेगी व दिशा भी। समाज की हालत आज बहुत बुरे,घोर अविश्वास एवं अत्यंत चिंताजनक दौर में पतन के गर्त में हैl यदि प्रशासन व न्याय व्यवस्था ऐसे ही पंगु रही,तो इससे भी ज्यादा भंयकर दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे।
अच्छे दिन की अनवरत ढपली बजाने वाले हमारे प्राधानमंत्री मात्र उपदेशक,कार्यक्रम प्रबन्धक लगते हैं और उनके हनुमान अमित शाह भारत के हर कोने में सरकार बनाते व बचाते नज़र आते हैं। मोदी जी `मन की बात` करते हैं,पर दूसरों के मन की बात कहां समझते हैं ? टोंक,हैदराबाद,उन्नाव जैसी
घटनाओं पर अब तक मौन क्यों हैं ? अब तक मात्र ५ प्रतिशत फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट अस्तित्व में आईं हैं,अधिकांश सीटें न्यायालय में नियुक्ति की बाट जोह रही हैं। ३ लाख से अधिक प्रकरण लंबित हैं। थानों में `महिला डेस्क` बना कर क्या करोगे,जब समुचित स्टाफ की भर्तियां नहीं होंगी। जब राम मंदिर के
प्रकरण की सुनवाई रोज हो सकती है तो उन्नाव के ५ दरिंदों के लिये क्यों नहीं ? यह फ़ास्ट ट्रैक भी कुछ दिन में धीमी हो कर खानापूर्ति नज़र आएगी।शासकों में इच्छाशक्ति के अभाव में ऐसे हालात बार-बार पैदा होते रहेंगे और हम बेबस,लाचार हो मोमबत्ती जलाते रह जाएंगे।
आज भारतमाता कराह रही है,चीत्कार कर रही है,कोई सुनने वाला जैसे है ही नहीं। दो तिहाई बहुमत के बाद भी इतनी विवशता! समझ नहीं आता क्यों ?
पिछली सरकारों को कोसने की बजाय कुछ अलग कर के दिखाओ,आखिर अपने को ‘पार्टी विद ए डिफरेन्स’ कहते हो! आखिर जनता कब तक इंतजार करेगी ? उसके सब्र के प्याले की कब तक परीक्षा लेते रहोगे ? आज हर सच्चा हिंदुस्तानी उद्देलित,आक्रोशित है,खून के आँसू रो रहा हैl ये आँसू विद्रोह में बदल कर तेजाबी हो जाएं,सम्भल जाओl जनता के `मत` से चुने जाने वालों,जनता की सुध ले लो,यही तख्त पर बिठाती है,यही तख्ता पलटती है। नारी की अस्मिता की रक्षा करना तुम्हारा दायित्व हैl नारी के अंदर दुर्गा,सीता,सावित्री,लक्ष्मी भी है और लक्ष्मीबाई भी,जो अंग्रेजों से अकेली भिड़ गई थी। अब हर महिला को अपने अंदर की लक्ष्मीबाई को जगाना होगाl सबल बन अपना सम्बल स्वयं बनना होगा। अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को इनको एकजुट हो कर सबक सिखाना होगा। आत्मरक्षा के हर उपाय से सब को जागृत करना होगा। ऐसे नरपिशाचों को पीटते-घसीटते हुए ले जा कर थाने में पटकना होगा, सिर्फ सरक-सरक कर चलती सरकारों के भरोसे कुछ नहीं होगा।
अभिभावकों को अपनी संतान के प्रति सचेत रहना होगा। आधनिकता के नाम पर खुली छूट कुछ भी गुल खिला देगी,बाद में हाथ मलते-पछताते रह जाओगे। दिल-दिमाग में विकृत मानसिकता ही उकसाने का काम करती है। आध्यात्मिक कहे जाने वाले इस देश में करोड़ों युवा अपना अधिकांश समय अश्लील फिल्म देखने में बिता रहे होते हैं। नारी-कन्या पूजा के इस देश में दुष्कर्म की घटनाओं की बढ़ती अधिकता ने जनमानस को अंधेरे भविष्य के गर्त में डाल दिया है। अब समय आ गया है कि अब दुष्कर्मियों के साथ `दुष्कर्मी आतंकी` वाला सलूक किया जाएl सख्त कानून,प्रशासन का भय,त्वरित
न्याय जब तक नहीं होगा,तब तो `अंधेर नगरी चौपट राजा` वाला हाल हो जाएगाl कोई डर नहीं कि,कुप्रवृत्ति आने वाली पीढ़ियों को नारकीय जीवन जीने को ही मजबूर कर देगीl समाज तभी बदलेगा,जब पहले तुम स्वयं को बदलोगे। आज `बेटी पढ़ाओ,बेटी बचाओ` अभियान के साथ-साथ `बेटा पढ़ाओ, संस्कार सिखाओ` अभियान की भी अत्याधिक जरूरत हैl

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक,धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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