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अनुबंधों के सम्बन्धो में

सुबोध कुमार शर्मा 
शेरकोट(उत्तराखण्ड)

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अनुबंधों के सम्बन्धों में,जाने कहाँ सम्बंध खो गये,
अपने,अपने नहीं रहे अब,जाने क्यों प्रतिबन्ध हो गये।

सुख-दु:ख था जीवन में फिर भी,सुखमय सबको लगता था,
आज अहं-विवाद ग्रस्त हो,परस्पर स्वतः कटु कन्द हो गये॥

प्रेम भाव था सम्बन्धों में,औपचारिकता ही अब पनप रही,
मिलन की टीस सदा उठती थी,वो भाव क्यों बंद हो गये ?॥

तन-मन सब न्यौछावर करते,परिजन दुःख मिटाने को,
वर्तमान में वही भाव क्यों,आज अचानक द्वंद हो गये॥

सभी स्वतंन्त्र थे अभिव्यक्ति में,पर स्वच्छन्द था नहीं कोई,
आज भय-सम्मान नहीं किसी का,पशु सम स्वछंद हो

सँस्कार कु-संस्कार हो रहे क्यों ?,कौन जिम्मेदार है इसका,
वहशीपन पशुवत हो गया,कामुकता में सब अन्ध हो गये।

शिक्षा,संस्कार या न्याय व्यवस्था,में कुछ नया करना होगा,
आधुनिकता के अन्धकार में,ये सब शीत के चंद हो गये।

अबोध मिटाओ जीवन का, ‘सुबोध’ को अब अपनाना होगा,
जग को यह दर्शा दो अब तो,जग में नव अनुबंध हो गये॥

परिचय – सुबोध कुमार शर्मा का साहित्यिक उपनाम-सुबोध है। शेरकोट बिजनौर में १ जनवरी १९५४ में जन्मे हैं। वर्तमान और स्थाई निवास शेरकोटी गदरपुर ऊधमसिंह नगर उत्तराखण्ड है। आपकी शिक्षा एम.ए.(हिंदी-अँग्रेजी)है।  महाविद्यालय में बतौर अँग्रेजी प्रवक्ता आपका कार्यक्षेत्र है। आप साहित्यिक गतिविधि के अन्तर्गत कुछ साहित्यिक संस्थाओं के संरक्षक हैं,साथ ही काव्य गोष्ठी व कवि सम्मेलन कराते हैं। इनकी  लेखन विधा गीत एवं ग़ज़ल है। आपको काव्य प्रतिभा सम्मान व अन्य मिले हैं। श्री शर्मा के लेखन का उद्देश्य-साहित्यिक अभिरुचि है। आपके लिए प्रेरणा पुंज पूज्य पिताश्री हैं।

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