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आम-बजट में राहत की उम्मीद

ललित गर्ग
दिल्ली

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देश में बढ़ती महंगाई,बेरोजगारी,व्यापार की टूटती साँसें,आर्थिक सुस्ती एवं विकास की रफ्तार में लगातार आ रही गिरावट चिंता एवं चिन्तन का कारण है। जनता महंगाई एवं नवीन आर्थिक परिवर्तनों से जार-जार है, लोग बढ़ती महंगाई को लेकर चिंतित हैं,वे चाहते हैं कि आयकर सीमा बढ़ाई जानी चाहिए। वित्तमंत्री से इस बार प्रस्तुत होने वाले बजट में राहत की दरकार भी है और उम्मीद भी। इस बार भी यदि यह बजट जनभावनाओं पर खरा नहीं उतरा तो देश का आर्थिक धरातल चरमरा सकता है। प्रश्न है कि आमजन किस तरह की राहत चाहते हैं और केन्द्र सरकार क्या सौगात देती है ? हालांकि यह तो २८ फरवरी को ही तय होगा कि वित्तमंत्री जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतरती हैं।
देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर लगातार गिर रही है और बाजार में मांग नहीं है। मांग इसलिए नहीं है कि लोगों की जेब में पैसे नहीं हैं। लोगों की जेब में अतिरिक्त धन हो तो वे बाजार में जाएं और कुछ न कुछ जरूरत के अनुसार खरीदें। जब खरीदारी बढ़ेगी,खपत बढ़ेगी तभी उद्यमी उत्पादन करेंगे। इसलिये देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये छोटे आयकरदाताओं और मध्यम वर्ग को आयकर श्रेणी में राहत देनी ही होगी, इसी से जो पैसा उनके पास बचेगा उससे उनकी कुछ क्रय-शक्ति बढ़ेगी और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी। सरकार ने पिछले अनेक सालों में महंगाई,कर और हर वस्तु के भाव इतने बढ़ा दिए हैं कि हम कैसे उम्मीद करें कि वे कितनी राहत देंगे और लोग अपनी आमदनी से अपना घर आसानी से कैसे चला पाएंगे? जितना सरकार ने लोगों को आहत किया है उससे ज्यादा राहत की आशा करना आम लोगों के लिए बेमानी साबित होगा,लेकिन इन जन-शंकाओं एवं आशंकाओं से परे जाकर सरकार कुछ अनूठा एवं विलक्षण कर पाई तो अनेक समस्याओं का समाधान होगा। सरकार की मुश्किल यह है कि व्यक्तिगत आयकर में छूट का दायरा बढ़ाने से राजकोषीय घाटा बढ़ेगा,लेकिन तरह-तरह के राहत पैकेज देने की बजाय सरकार इस मूल में कुछ अनोखा कर सके, तो यह चमत्कार ही होगा,और जनता इस चमत्कार को नमस्कार करेंगी। नरेन्द्र मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पिछले दिनों जो उपाय किए हैं,उनका असर कब से दिखना शुरू होगा,यह अनिश्चित है,लेकिन आयकर में राहत का असर तत्काल दृश्यमान होगा।
अर्थव्यवस्था अजीब विरोधाभासी दौर में है जिसमें लगातार महंगाई बढ़ रही है,नये रोजगार के अवसर सामने आने की बजाय रोजगार में कटौती हो रही है,उत्पादन गतिविधियां कमजोर हो रही हैं,निवेश घट रहा है,बाजार में मांग कम हो रही है और निर्यात घाटा भी बढ़ रहा है। विदेशी मुद्रा (डालर) महंगी हो रही है,मगर शेयर बाजार बढ़ रहा है और सोने की कीमतों में भी लगातार वृद्धि हो रही है। मुद्रास्फीति की दर या महंगाई में कमी को भी इन्हीं सब आधारभूत आर्थिक मानकों से बांध कर देखना होगा। इसका सीधा मतलब यह होता है कि बाजार में सक्रिय आर्थिक शक्तियां निराशा एवं हताशा की स्थिति में हैं। प्रश्न है कि यह स्थिति क्यों बन रही है? सरकारी बजट को आम लोग समझते ही नहीं कि उनके धन का कितना उपयोग या दुरुपयोग हो रहा है। जो समझते हैं वे सिवाय विरोध के कुछ नहीं करते।
पिछले दिनों सरकार ने विदेशी निवेशकों से अधिभार हटाया और कॉर्पोरेट कर में कटौती की। ऑटो सेक्टर की बेहतरी के लिए घोषणाएं की गईं,संकटग्रस्त रीयल एस्टेट और नॉन बैंकिंग फाइनैंशल कंपनियों के लिए भी कदम उठाए गए। इन सबसे बाजार में सुधार की आशा है। संभव है, बाजार में डिमांड बढ़ाने के लिए बजट में कुछ बड़ी राहत की घोषणाएं एवं प्रावधान किये जाने जाएं। इन सबके साथ-साथ सरकार को रोजगार बढ़ाने पर विशेष ध्यान देना होगा। अगर लोगों को बड़े पैमाने पर नौकरी मिलनी शुरू हुई तो इससे आम उपभोक्ताओं में विश्वास और उत्साह पैदा होगा। सरकार वक्त की नजाकत समझे। अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए वह दलीय भेदभाव भुलाकर सबको साथ ले और कुछ ठोस व कारगर फैसले करे। भ्रष्टाचार एवं बेईमानी की स्थितियों पर वर्तमान सरकार ने नकेल डाली है। उसका व्यापक असर भी देखने को मिला है, अब उसे इन कठोर कदमों के बीच जनता की तकलीफों एवं परेशानियों पर नियंत्रण पाने के लिये कुछ नये कदम उठाने होंगे।
सरकार को जनता के जेब पर कर के रूप में हमला न करते हुए, उदार दृष्टिकोण अपनाना होगा। चाणक्य नीति में कहा गया है कि जिस प्रकार फूल से भंवरा मधुकरी कर बिना फूल को नुकसान पहुंचाए काम चलाता है, ठीक उसी प्रकार सरकार को जनता से कर लेना चाहिए। अधिक नहीं। मनुस्मृति में कहा गया है कि सरकार को यथोचित मात्रा में ही कर लेना चाहिए अन्यथा साधारण जन तो क्या साधु-संत भी विद्रोह पर उतारू हो जाते हैं। हमें मितव्ययता की वृत्ति नहीं बल्कि खर्च करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देना होगा, तभी हम देश की आर्थिक अस्मिता एवं अखण्डता को बचा सकते हैं।
आठ दशकों के सफर के बावजूद देश के आयकर अधिनियम में भी कई छिद्र थे। लोग अच्छी आय होने के बावजूद आयकर की चोरी करते थे और इसके लिए कई अनैतिक तरीके अपनाते थे। मोदी सरकार ने इन स्थितियों में सुधार के लिये अनेक क्रांतिकारी कदम उठाये,नोटबंदी और जीएसटी लागू की गयी,लेकिन नोटबंदी और जीएसटी के बाद छोटे उद्योगों को हानि हुई,व्यापार में अंधेरा व्याप्त हुआ,जीएसटी की पेचिंदा एवं जटिल प्रणाली ने लोगों की उलझने बढ़ाई। पूरा देश एक बाजार तो बन गया,लेकिन छोटे उद्योगों को राज्य की सीमा में जो संरक्षण मिलता था वह समाप्त हो गया। छोटे उद्योगों पर बोझ बढ़ा। जब देश एक बाजार बन गया तो सस्ते माल को बनाने वाले बड़े उत्पादकों के हाथ पूरा मैदान आ गया जिसमें छोटे उद्योगों को कोई जगह नहीं मिलती। फलस्वरूप रोजगार खत्म हो गए। छोटे उद्योगों से कर्मचारी निकाल दिए गए और मंदी के दौर में आटोमोबाइल कम्पनियों ने भी हजारों लोगों को नौकरी से निकाल दिया। उद्योग व्यापार जगत के लोग लगातार निरुत्साहित हैं। उनकी शिकायतें बेवजह नहीं है। सरकार उनकी नाराजगी एवं परेशानी से भली-भांति भिज्ञ है,माहौल को ढांपने का प्रयास करती हैं। बेहतर यही होगा कि सरकार दीर्घकालीन उपाय करे और आम आदमी,छोटे उद्योगों एवं व्यापारियों को राहत प्रदान करे। नए बजट में उसे ऐसे उपाय करने होंगे,ताकि आम आदमी के साथ व्यापारियों एवं उद्यमियों के चेहरों पर मुस्कुराहट आ सके।

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