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अपनी तलाश में

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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लोग कहते हैं-रात लम्बी है,
मुझको लगता है-कितनी छोटी है।
सांझ ढली,
रात आई,गई,
और सुबह हुई।
दिनभर मैं व्यस्त,
काम-काज में मस्त।
रात होते ही होश आता है,
कि मैं,मैं हूँ।
बहुत इन्तजार के बाद मैं,
अपने-आपसे मिलती हूँ।
न कुछ कह पाती,न सुनती हूँ,
कि रात खत्म हो जाती है,
और सुबह मैं से मैं गायब हो जाती हूँ।
प्रकाश होता है पर मैं,
अंधकार में छुप जाती हूँ।
अपने-आपको ढूंढती हूँ,
पर न जाने कहां खो जाती हूँ ?
आपा-धापी,भागदौड़,
तनाव,जिम्मेदारी…
इन सबके बीच चकरघिन्नी हो जाती हूँ,
अपने लिए कहां जी पाती हूँ ?
रात होती है,
फिर से मैं खुद को तलाशती हूँ।
पर थक जाती हूँ,सो जाती हूँ,
मैं अपने-आपसे कहां मिल पाती हूँ॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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