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भारतीयों तुम पर गर्व है हमें

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रपट में कहा गया है कि दुनिया के विभिन्न देशों में १.८० करोड़ भारतीय प्रवास कर रहे हैं। इनकी संख्या २ करोड़ कहूं तो ज्यादा सही होगा,क्योंकि फिजी से सूरिनाम तक फैले २०० देशों में भारतीय मूल के लाखों लोग पिछले सौ-डेढ़ सौ साल से वहीं के होकर रह गए हैं। जब से यातायात की सुविधाएं बढ़ी हैं और तकनीक के विकास ने दुनिया को छोटा कर दिया है,लगभग सभी देशों में प्रवासियों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हो गई है। इस समय दुनिया के सब देशों में कुल मिलाकर २७ करोड़ विदेशी नागरिक रह रहे हैं। भारत के प्रवासियों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। ५० साल पहले जब न्यूयार्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ता था,तब कोई भारतीय कहीं दिख जाता था तो बाँछें खिल जाती थीं। हिंदी में किसी से बात करने के लिए तरस जाता था,लेकिन अब अमेरिका के छोटे-मोटे गाँवों में भी आप भारतीयों से टकरा सकते हैं। अबू धाबी और दुबई तो अब ऐसे लगते हैं,जैसे वे कोई भारतीय शहर ही हों।
संयुक्त अरब अमारात में इस समय ३५ लाख भारतीय हैं,अमेरिका में २७ लाख और सउदी अरब में २५ लाख! आप दुनिया के किसी भी महाद्वीप में चले जाइए-आस्ट्रेलिया से अर्जेंटिना तक आपको भारतीय लोग कहीं भी दिख जाएंगे। पिछले २० साल में १ करोड़ भारतीय विदेशों में जाकर बस गए हैं। अमेरिका,यूरोप और सुदूर पूर्वी देशों में तो प्रायः पढ़े-लिखे लोग जाते हैं और अरब देशों में मेहनतकश लोग! सब मिलाकर ये भारतीय सालाना ५ लाख करोड़ रु. भारत भेजते हैं। हमारे केरल-जैसे प्रांतों की समृद्धि का श्रेय इसी को है। जो भारतीय विदेशों में रहते हैं,वे वहां की संस्कृति से पूरा ताल-मेल बिठाने की कोशिश करते हैं लेकिन भारतीय संस्कृति उनकी नस-नस में बसी होती है। वे भारत में नहीं रहते,लेकिन भारत उनमें रहता है। वे उन देशों के लोगों के लिए बेहतर जीवन-पद्धति का अनुकरणीय आदर्श उपस्थित करते हैं। अमेरिका में तो यह माना जाता है कि वहां रहनेवाले भारतीय लोग समूह के रुप में सबसे अधिक सुशिक्षित, सुसंस्कृत और सम्पन्न वर्ग के लोग हैं। यदि ये भारतीय आज एकाएक भारत लौटने का फैसला कर लें तो अमेरिका को हृदयाघात हो सकता है। अब से २० साल पहले लिखा था कि वह दिन दूर नहीं,जबकि अमेरिका का राष्ट्रपति कोई भारतीय मूल का व्यक्ति होगा। कमला हैरिस इस लक्ष्य के पास पहुंच चुकी हैं। दुनिया के लगभग एक दर्जन देशों में भारतमाता के बेटे-बेटियां सर्वोच्च पदों पर या उन तक पहुंच चुके हैं। हमें उन पर गर्व है।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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