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उपदेश

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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देने वाले देने को उपदेश,
बहुत दे जाते हैं…
पर क्या ऐसा होता है वो,
उस पर चल पाते हैं।

देते हैं उपदेश धर्म का,
खिल्ली वही उड़ाते हैं…
सदा सत्य पर चलना सीखो,
ये हमको समझाते हैं।

प्रवचनों की आड़ लिए,
धर्मोपदेश देने वाले…
मुँह में रखते नाम राम का,
नजर जेल में आते हैं।

पर उपदेश कुशल बहुतेरे,
सुना हुआ है बरसों से…
पर उपदेशक खुद गंदी,
गलियों में देखे जाते हैं।

दिनभर मंदिर में माला ले,
पाठ कर रहे गीता का…
शाम ढले वो लोग कई,
मयखाने में दिख जाते हैं।

ऐसे लोग बहुत कम हैं जो,
उपदेशों पर चलते हैं…
जो चलते हैं सही राह पर,
वो ही मंजिल पाते हैं।

ये सच है सत्योपदेश से,
जीवन सुखमय होता है…
जो उल्लंघन करता है वो,
बीज नाश के बोता है।

वैसे तो अपना‌ जीवन,
उपदेशों पर आधारित है…
गलत कर्म जितने दुनिया के,
सबको खारिज करता है।

चोरी जारी,लूट-डकैती वही,
लोग तो करते हैं…
सुनते नहीं किसी का कहना,
अपने मन की करते हैं।

इसीलिए कहता हूँ अच्छे,
उपदेशों को मानो तुम…।
वर्ना क्या-क्या पड़े भोगना,
सोचो औ पहचानो तुम॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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