शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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गगन मनाता खुशी धरा भी तो मुस्कायी है,
घर भर में उल्लास हुआ है खुशियां छाई है।
ले कांसी का थाल बजाया छत पर माई ने,
धन्य-धन्य है भाग्य हमारे बिटिया आयी है।
प्यारा-सा मुख छोटी आँखें लाल गुलाबी होंठ,
उन होंठों पर प्यारी-सी मुस्कान सजायी है।
इतनी खुशी मिली मुझको है मन में नहीं समाती,
आज मोहल्लेभर में घर से बंटी मिठाई है।
तरस रहे थे बेटी खातिर आज वही दिन आया,
माँ,दादी,ताई,काकी,भाई का मुख,मुस्काया।
बचपन खेलेगा आँगन में चहकेगी चिड़िया-सी,
इधर-उधर डोलेगी जैसे जापानी गुड़िया-सी।
तितली जैसे घूमेगी रंगीं परिधान सजाये,
गुड़िया की शादी अपने गुड्डे के संग रचाये।
छम-छम करती डोलेगी बजती पायल की धुन पर,
सुंदर नाच दिखाएगी फिल्मी गानों को सुनकर।
पढ़ने-लिखने की खातिर कॉलेज-स्कूल जाएगी,
नाम कमायेगी पढ़-लिख कर ऊंचा नाम करेगी।
मेरी बिटिया घर में सबके दिल पर राज करेगी,
उन्नत होगा भाल मेरा जब नभ पर पांव धरेगी।
उसे बचा कर रखूंगा मैं दुर्व्यसनी नजरों से,
सुदृढ़ सशक्त कर दूंगा इतनी दूर रहे व्यसनों से।
आखिर वो दिन आएगा जब दूर चली जाएगी,
छोड़ के बाबुल की गलियां परदेसी हो जाएंगी।
है दुनिया की रीत यही घर छोड़ के जाना होगा,
अपने सुंदर सपनों का संसार बसाना होगा।
पालो-पोसो,विदा करो ये कैसी रीत बनायी,
रीत बनाने वालोंं को बिल्कुल भी दया न आयी।
जिसके खातिर जिया अभी तक वो लुट जायेगा,
जायेगी जब छोड़ के बाबुल रोता रह जायेगा।
माँ का होगा हाल बुरा जिस माँ ने उसको पाला,
वो भूखी रह पहले उसके मुँह में दिया निवाला।
हर रक्षाबंधन पे होगी सूनी एक कलाई,
रो-रो कर के याद करेगा वो माँ जाया भाई।
लगा टकटकी देखेंगे द्वारे पर इस लगाये,
दूर बसी परदेसी बहना शायद अब आ जाएll
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।