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परिचय

नरेंद्र श्रीवास्तव
गाडरवारा( मध्यप्रदेश)
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वे पुलिस महकमे में हवलदार थे। बड़ी-बड़ी घनी मूंछें,गोल-मटोल चेहरा,लंबा कद…उनके रौबीले व्यक्तित्व का बड़ा रुतबा था। उनका एक बेटा था,सब उसे प्यार से ‘भैयाजी’ कहते। हवलदार का बेटा होने की वजह से वह पूरे मौहल्ले का लाड़ला था।
एक दिन भैयाजी साइकिल से कहीं जा रहे थे,गिर गए। उन्हें चोट लग गई। कुछ लोग उन्हें चिकित्सक के पास ले गए।
चिकित्सक इलाज बेहतर करें,यह सोचकर उन लोगों ने भैयाजी का परिचय दिया-‘ये हवलदार साहब का बेटा है। साइकिल से गिर गया है।’
चिकित्सक ने उसकी मरहम-पट्टी कर दी।
समय बीता। हवलदार साहब रिटायर हो गए। भैयाजी महाविद्यालय जाने लगे। छात्रसंघ के चुनाव हुए तो वे अध्यक्ष चुन लिए गए।महाविद्यालय से निकले तो राजनीति में आ गए। योग्यता और सक्रियता की वजह से उन्होंने राजनीति में अच्छी पैठ बना ली। लोगों के बीच अब वे बहुत प्रसिद्ध और प्रिय हो गए। अब तक हवलदार साहब को लोग भूल चुके थे। जहाँ देखो,वहीं भैयाजी का जलजला था।
एक दिन हवलदार साहब की तबीयत बिगड़ गई। भैयाजी,दिल्ली प्रवास पर थे। मोहल्ले के कुछ लोग उन्हें चिकित्सक के पास ले गए।
चिकित्स्क इलाज बेहतर करें,यह सोचकर उन लोगों ने हवलदार साहब का परिचय दिया,-‘ ये भैयाजी के पिताजी हैं। अचानक इनकी तबीयत बिगड़ गई है। भैयाजी दिल्ली गए हुए हैं।’
चिकित्सक को पुराना वाकया याद आ गया, जब कुछ लोग इन्हीं हवलदार साहब का परिचय देते हुए भैयाजी की मरहम-पट्टी कराने आए थे,और आज उन्हीं हवलदार साहब का परिचय भैयाजी के नाम से करा रहे हैं। सोचकर वे तनिक गंभीर हुए,फिर उनके इलाज में जुट गए।

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