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भारतीय संस्कृति और `कोरोना` संकट का एकांतवास

नरेंद्र श्रीवास्तव
गाडरवारा( मध्यप्रदेश)
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विश्व में हमारी संस्कृति की एक अलग पहचान है। हमें अपनी संस्कृति पर गर्व भी है और गौरव भी। हमने सृष्टि के महत्व को समझा,जाना और सम्मान किया है। सृष्टि एवं सृष्टिकर्ता को ईश्वर माना है,सर्वश्रेष्ठ और परम पूजनीय मानकर उन्हें शत-शत नमन किया है। हमारी संस्कृति ने ईश्वर द्वारा दिए गए जीव स्वरूपों में जन्मे चौरासी लाख योनि में मनुष्य योनि को प्रमुख और श्रेष्ठ माना है। हमारी संस्कृति ने धर्म और धर्मग्रंथों,गुरू,मातृ,पितृ,पूर्वजों के साथ-साथ वानस्पतिक जीवन का भी आदर करना सिखाया है और उसके महत्व को समझाया है। उनमें औषधीय विशेषताओं को खोजा है,पूजा की हैl तुलसी,पीपल,बरगद,आँवला,बील आदि की हम पूजा करते हैं।
हमने ‘वसुदैव कुटुम्बकम’ और ‘सर्व हिताय’ एवं नारी में देवी के स्वरूप के सिद्धांत को अपनाया है। यही नहीं,हमने नदी,सागर,पर्वत, आकाश,पाताल,ग्रह,नक्षत्र,भूमि,सूर्य,चंद्रमा को पवित्र और पूजनीय मानते हुए स्वयं को सदैव सेवक समझा है। यही नहीं,हमने पशु-पक्षियों के अस्तित्व को न केवल स्वीकारा है बल्कि ईश्वर के सन्निकट तक ले जाकर उनको सम्मान दिया है। गाय को माता का स्थान दिया है। उनकी पूजा करते हैं। हम नाग को देवता मानकर पूजा करते हैं। पितृ पक्ष में कौवों और कुत्तों को भी खाना खिलाने की परम्परा है। शेर,उल्लू,गरूड़,हंस,चूहा आदि को देव-देवियों के वाहन के रूप में माना है। हमारी संस्कृति में अस्त्र-शस्त्रों की पूजा का प्रावधान है।
हम वाद्ययंत्रों,कलम-दवात,बहीखातों,कृषि उपकरणों एवं अपनी जिजीविषा के संसाधनों की भी पूजा करते हैं। हमने अलग-अलग ऋतुओं और तिथियों के साथ-साथ पूर्णिमा और अमावस के महत्व को समझते हुए उनके अनुसार उपासना को आधार बनाया है।
जननी,जन्मभूमि,राष्ट्र भूमि का भी विशेष महत्व और उच्च स्थान है। अतिथि को देवतुल्य माना गया है। पड़ोसी और मित्र की अलग व्याख्या है और महत्व है।
हमारी संस्कृति के अंतर्गत हमने वैज्ञानिक,साहित्यकार,गायक, संगीतकार,चित्रकार,मूर्तिकार,अभिनेता,नेता,खिलाड़ी आदि प्रतिभाशालियों को अपने हृदय में स्थान दिया है। उनका अंतर्मन से सम्मान किया है। हमारे लिए रामायण की चौपाई,गीता के श्लोक, रहीम के दोहे,सूर के पद,मीरा के भजन,कबीर की साखी,गिरधर की कुण्डलियां,महापुरुषों के कथन अमृत वचन हैं।
यही नहीं,हम न्यायालय,विद्यालय,साहित्यिक,सांस्कृतिक मंच,खेल के मैदानों,गौशाला आदि स्थानों को भी देव स्थान तुल्य मानते हैं और नमन करते हैं। हम सभी धर्मों और भाषाओं का समान रूप से सम्मान करते हैं।
हमारे लिए तीज-त्योहार,दान-दक्षिणा,रीति-रिवाजों का अलग और विशेष महत्व है। जन्म,मृत्यु,विवाह आदि जीवन के हर चरणों को विधि-विधान से पूर्ण करने की पद्धति है।
हमारी संस्कृति में अग्नि,अन्न,जल,वायु को देवता और मिट्टी एवं विद्या को देवी मानकर पूजा की जाती है। हमारी संस्कृति में ऋषि, मुनि,तपस्वी,साधु,संत,आचार्य,महर्षि मठाधीश,पुजारी,पंडित,गुरू, अध्यापक,विद्वान,बुजुर्ग,महिला,कन्या सभी का अलग-अलग सम्मान जनक विशेष स्थान है। इनके चरण स्पर्श कर हम धन्य समझते हैं।
हमारी संस्कृति में यज्ञ,हवन,कलश,दीपदान,पवित्र नदियां,गंगा, यमुना,सरस्वती,नर्मदा आदि का भी विशेष महत्व है। इन पावन नदियों में पैदल यात्रा,परिक्रमा,आरती,अमावस,पूर्णिमा पर स्नान, मेले का आयोजनों का भी आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व है।
पूजा,पाठ,व्रत,प्रार्थना,भजन,आरती,तपस्या कर्म को हमने श्रेष्ठ कर्म माना गया है। यहाँ तक के मौन और एकांतवास को भी धर्म से ही जोड़कर संयम और साधना से ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग माना गया है। हमने योग को भी अपनाया है। अपने से बड़ों का आदर करना और छोटों को प्यार देना हमारा बड़प्पन और आदर्श माना गया है। क्षमा करना हमारे श्रेष्ठ गुणों में से एक है। नेकी,निष्ठा,त्याग, अहिंसा,सत्य,दया,करुणा,सम्मान,मर्यादा आदि सद्गुण हमें संस्कारवान बनाते हैं।
कुल मिलाकर हमारी संस्कृति अनुपम है। हमें गर्व है। इसी संस्कृति के आधार मानकर हमने जन्म-मृत्यु और जीवन-मूल्यों को समझा है। उन्हें आदर्श माना है,अपनाया है। उन्हीं के आधार पर सामाजिक स्थान और सम्मान निर्धारित किए हैं।
आज जब विश्व के साथ-साथ अपना देश भी `कोरोना` संक्रमण की भीषण आपदा से जूझ रहा है। ऐसी विषम परिस्थिति में निदान के प्रयास तो किए ही जा रहे हैं,बचाव के विकल्प भी अपनाए जा रहे हैं ताकि इस संक्रमण के फैलाव को रोका जा सके। `तालाबंदी` भी इसका प्रमुख और श्रेष्ठ उपाय माना गया है। इसी के तहत केन्द्र, राज्य और जिला प्रशासन के दिशा-निर्देशों पर हर नागरिक अपने कर्तव्यों और दायित्वों का निष्ठा से निर्वहन कर रहा है। अत्यंत आवश्यक कार्य के लिए ही बाहर निकलने को छोड़कर,हर नागरिक पूरा समय अपने-अपने घर में ही बिता रहा है। घर में बीत रहे इस समय को `कोरोना का एकांतवास` कहना कोई अतिश्योक्ति ना होकर, समय और वजह के अनुरूप परिस्थिति की सही संज्ञा देकर सार्थक व्याख्या और परिभाषित करना है।
समाज और दुनियादारी से दूर,पूरे समय घर में ही रहना एकांतवास ही है। समझदार और एकांत के पक्षधर इस अवसर का भरपूर लाभ ले रहे हैं और तन्मयता से आध्यात्म,भक्ति और योग में सामर्थ्य के अनुसार अधिक से अधिक समय का सदुपयोग कर रहे हैं। ध्यान और मौन की अवस्था में डूबे रहकर आत्मानुभूति से आनंदित तो ही रहे हैं, आत्मनिरीक्षण और आत्मनियंत्रण से विकारों को दूर करने के लिए दृढ़ संकल्पित हो साधनारत भी हैं। कोरोना आपदा के संघर्ष को सुअवसर और सौभाग्य में बदलने का चिर प्रयास कर रहे हैं। शेष समय को परिवार के साथ बिताकर अपने दायित्वों का शुचिता से निर्वहन कर रहे हैं और तालाबन्दी का परिपालन करते हुए एक सच्चे नागरिक होने का परिचय भी दे रहे हैं।
कोरोना आपदा भीषण और असाधारण है। इसे हल्के में समझना भयंकर भूल होगी। अतः,सजगता से सावधान रहते हुए शासन-प्रशासन द्वारा दिए जा रहे निर्देशों का अक्षरशः पालन करना हमारी व्यक्तिगत नैतिक जिम्मेदारी और जबाबदारी है। हरेक नागरिक का नैतिक योगदान,परिवार,समाज और राष्ट्र की खुशहाली के लिए वरदान साबित होगा।
यही हमारा लक्ष्य और ध्येय है,और होना भी चाहिए। यही हमारी संस्कृति है और यही हमारे संस्कार हैं।

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