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अनजानी ये रहगुजर

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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जिन्दगी ये मिली जिस्म भी मिला है सुहाना,
बन जाए कब मिट्टी,इसका न ठिकाना।
बनना ही है जब मिट्टी तो फिर क्यों न,
खुश होकर जीना,प्रेम-प्यार से बिताना।
जिन्दगी ये मिली…

मंजिल तय है हर एक सफर की मगर,
हर एक मुसाफिर,बेखबर है डगर से।
कुदरत ने सबको दी है ये रहगुजर,
कब मिल जाए ये,किस कदम पे डगर के।
जिन्दगी ये मिली…

बनना ही है जब मिट्टी तो फिर हम क्यों न,
प्रेम से ही गुजारें,खुल कर इसे जी लें।
हर डगर जब अनजानी ही है इसमें तो,
हम फिर क्यों इससे मिले जितनी खुशी लेंl
जिन्दगी ये मिली…

बाकी है जो सफर चलो हम सब मिल-जुल के,
इक-दूजे को चाहें,प्रेम-प्यार से गुजारें।
छल-कपट द्वेष निन्दा मारें हर दिल से,
नफरत को मारें,प्रेम-प्यार से गुजारें।
जिन्दगी ये मिली…जिस्म भी मिला है सुहाना,
बन जाए कब मिट्टी,इसका न ठिकानाll

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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