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हे कृपानिधान

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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भव बाधा सब दूर हो,जीवन आठों याम।
सद्गुरु दीन दयाल हे,शत्-शत् करूँ प्रणाम॥

भक्ति ज्ञान दो नाथ जी,पूजन सुबहो शाम।
करूँ अराधन आपकी,हे मेरे श्री राम॥

भवबंधन सब दूर हो,हे प्रभु कृपा निधान।
चरण शरण अब राखिए,मैं निर्बल नादान॥

मन को जागृत कीजिये,मन में शक्ति अपार।
मन से ही ज्ञानी बने,जीत चलो संसार॥

कृति से ही पहचान है,कृति से ही अभिमान।
इनसे ही मिलता हमें,जग में तो सम्मान॥

प्रभु ही खेवनहार है,प्रभु ही है रखवार।
जीवन नैया थाम कर,करता है भव पार॥

प्रभु प्रताप आलोक से,भागे जग अँधियार।
प्रभु से ही कुसुमित हुई,वन में आज बहार॥

दिव्यपुंज ज्योतिर्मया,अद्भुत रूप निखार।
वही समाये जीव में,मेरे पालनहार॥

संरक्षक बनकर यहाँ,आओ हे घन श्याम।
प्रेम पुजारी आपका,शत् शत् करूँ प्रणाम॥

निराकार भगवान है,मन की आँखों देख।
सबका रचता भाग्य है,पाप-पुण्य का लेख॥

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