बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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पुलकित मन अब तो हुआ,पावस की मधु मास।
हर्षित मेरा प्यार है,मिलने की बस आस॥
आज सशंकित मैं हुआ,बादल गरजे जोर।
बिजली चमचम है करे,बारिश भी चहुँओर॥
आतंकित होने लगे,दुश्मन सीमा पार।
लड़ने को आतुर हुए,सारा हिन्दुस्तान॥
विज्ञ बनो हे साथियों,अनपढ़ से क्या काम।
होते हैं जग में सुखी,होय नहीं बदनाम॥
रहना मत अनभिज्ञ तू,रखना सबका ध्यान।
तभी सुखी परिवार भी,होते हैं इंसान॥
मेहमान आये कभी,करना तुम सत्कार।
मिलता अच्छा प्यार है,हो अच्छा व्यवहार॥
सभी शेर को देखकर,करतें हैं चित्कार।
भागे-भागे हैं फिरें,मुँह मोड़े घर द्वार॥
आँगन शोभामान है,फूल खिले चहुँओर।
महक उठे खुशबू यहाँ,पवन चले पुरजोर॥
कार्य सभी मन से करो,मत समझो तुम क्लिष्ट।
सब अपने में पूर्ण है,होते खास अभीष्ट॥
जग में आप विशिष्ट हैं,रखना अपना ध्यान।
नहीं किसी से कम यहाँ,कहना मेरा मान॥