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विरासत

देवश्री गोयल  
जगदलपुर-बस्तर(छग)
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ईट,सीमेंट छड़ गिट्टी ट्रक से उतरता देख मैं सन्न रह गया। समझ गया था कि अब इस घर में मेरा आखरी समय आ गया है। मेरी आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे,मैं सामने देख रहा था आँगन में कुछ लोग आधुनिक ढंग से मुझे गिराने के बारे में बात कर रहे थे। मैं पिछली ३ पीढ़ी से इस घर की निगरानी कर रहा हूँ। मुझे आज भी याद है जब मुझे पहली बार विपुल के परदादा देवीदयाल जी ने अपनी शादी के दिन रोपा था।उनके जीवनकाल में मेरी शान ही कुछ और थी। आँगन में कोई भी त्यौहार समारोह,सत्संग,लोगों का मिलना- जुलना हो…,उसमें मेरा शामिल होना अनिवार्य था…। सब-कुछ मेरी आँखों के सामने होता था…मैं भी झूमता-गाता उनकी खुशी में खुश होता…दुःख में दुःखी होता। समय बदला,विपुल के दादाजी दीनदयाल ने भी यह प्रथा बरकरार रखी। मेरे ही सामने हर परिस्थिति का सामना किया उन्होंने…! अपनी गृहस्थी बढ़ाई,वार-त्यौहार मनाए। विपुल का जन्मदिन बड़े धूमधाम से मेरे नीचे मनाया गया था। धीरे-धीरे वह बड़ा हुआ,फिर बाहर पढ़ने चला गया। यहां से मैं थोड़ा अकेला हो गया। देवीदयाल जी के समय जो चहल-पहल हुआ करती थी, दीनदयाल जी के आते-आते बहुत कम हो गई थी। विपुल तो जब पैदा हुआ था तो मेरी डालियां ही उसका झूला बनी थी..बचपन उसने मेरी ही बाँहों में गुजारा था…पर अब पता नहीं,उसे मेरी याद भी है या नही..मेरी आँखों से आँसू बह निकले…पर मैं किसी को बता भी नहीं सकता था…। कुछ दिनों से मैं सुन रहा था कि पुराने घर को तोड़कर नया घर बनाया जाएगा…,ताकि किराए में उठाया जा सके… पर आँगन के बीच में मेरी उपस्थिति सभी को खटक रही थी..! मैं समझ नहीं पा रहा था कि मैं कैसे अपने-आपको बचाऊं ? मैं बोल तो सकता नहीं था,न ही कोई मेरी भाषा समझता । आज रही-सही आशाओं पर पानी फिर गया था,क्योंकि आज घर में सीमेंट-ईंट आ गई थी। इसका मतलब मेरा घर सेे जाना तय हो गया था…सदा-सदा के लिए…! कड़वा जरूर था पर सबसे शुद्ध हवा देता था…मुझे पता था कि कोई मेरी पुकार नहीं सुनेगा। मैं मन-ही-मन सिसक रहा था…तभी पीछे से चमचमाती हुई काली गाड़ी से विपुल उतरा। उसने अपने साथ आए हुए इंजीनियर से कहा-“सुनिए,ये पूरा घर आप देख लीजिए। डिज़ाइन जो मैंने बताया है बिल्कुल वैसा ही होना चाहिए। बस एक बात का ध्यान रखेंगे कि इन्हें कोई नुकसान न पहुंचे।” मैंने देखा,विपुल मेरी ओर इशारा कर रहे थे।इंजीनियर ने चौंक कर पूछा कि-‘बीचों- बीच इस ‘नीम के पेड़’ को…! सॉरी आपकी बात बीच में काट रहा हूँ!”
विपुल ने कहा-“ये पेड़ नहीं,हमारी विरासत है। जो हमारे पूर्वज हमें दे गए हैं। मैं अपनी विरासत की चीजों को बर्बाद नहीं कर सकता। अगर आपने इनकी एक डाली को भी नुकसान पहुंचाया तो आप समझ लीजिए…!” “जी…जी सर,समझ गया। हम इन्हें बिलकुल नुकसान नहीं पहुँचाएंगे।”
और मैं यह सब सुन खुशी से झूम उठा।मेरे रोम-रोम से विपुल के लिए आशीर्वाद निकल रहा था और देवी दयाल जी की पूरी पीढ़ी पर गर्व हो रहा था…!! सच,संस्कार और विरासत संजोने की ही चीज है न ?

परिचय-श्रीमती देवश्री गोयल २३ अक्टूबर १९६७ को कोलकाता (पश्चिम बंगाल)में जन्मी हैं। वर्तमान में जगदलपुर सनसिटी( बस्तर जिला छतीसगढ़)में निवासरत हैं। हिंदी सहित बंगला भाषा भी जानने वाली श्रीमती देवश्री गोयल की शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी, अंग्रेजी,समाजशास्त्र व लोक प्रशासन)है। आप कार्य क्षेत्र में प्रधान अध्यापक होकर सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत अपने कार्यक्षेत्र में ही समाज उत्थान के लिए प्रेरणा देती हैं। लेखन विधा-गद्य,कविता,लेख,हायकू व आलेख है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना है,क्योंकि यह भाषा व्यक्तित्व और भावना को व्यक्त करने का उत्तम माध्यम है। आपकी रचनाएँ दैनिक समाचार पत्र एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैं,जबकि प्रेरणा पुंज-परिवार और मित्र हैं। देवश्री गोयल की विशेषज्ञता-विचार लिखने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा हमारी आत्मा की भाषा है,और देश के लिए मेरी आत्मा हमेशा जागृत रखूंगी।”

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