गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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सभी ने अपने दादा-दादी,नाना-नानी को वृद्ध होते देखा होगा,यानि छोटेपन से उनके साथ समय अवश्य ही बिताया होगा। उसी दौरान पाया होगा कि धीरे-धीरे वे शिथिल होते जाते हैं। कभी उनके दाँतों में तकलीफ होती है,तो कभी आँखों में। इसी प्रकार अनेक अंग से वे लाचार होते चले जाते हैं। यहाँ तक कि दाँतों की चिकित्सा पश्चात भी एक समय बाद उससे रूचि पूर्वक भोजन करने में असुविधा हो ही जाती है। इसी प्रकार आँखों में लेन्स प्रत्यारोपण पश्चात भी तकलीफ महसूस होती ही है। घुटनों के साथ भी इसी प्रकार की तकलीफ सहन करनी पड़ती है और तो और कान भी तकलीफ देना शुरू कर ही देते हैं,लेकिन जीह्वा यानि जीभ जो है,वह हमेशा जवान ही रहती है,यानि उम्र बढ़ने के साथ शरीर के अन्य अंग जैसे शिथिल पड़ने लगते हैं,वैसे जीह्वा के साथ नहीं होता। इसका मतलब यह है कि,जीभ का आवेश जीवन के आखरी क्षण तक रहता है। इसलिए किसी ने ठीक ही कहा है कि,ये जो
जीभहै,इसे चिरकाल जवानी प्राप्त हुई है।
उपरोक्त बात को ध्यान में रखकर ही महा संत कबीर दास ने कहा है-
जिभ्या जिन बस मे करि,तिन बस कियो जहान
नहि तो अवगुन उपजै,कहि सब संत सुजान।
यानि,जिसने अपने जीव्हा को नियंत्रित कर लिया है,वह वस्तुतः संसार को जीत लिया है। अन्यथा अनेक अवगुण और पाप पैदा होते हैं-ऐसा ज्ञानी संतों का विचार है।