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जीवन सरिता बहती जाए

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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जीवन सरिता बहती जाए कहीं न रुकने पाए,
मन का सारा कलुष ज्ञान की गंगा में बह जाए।

करूँ प्रार्थना तुमसे स्वामी मैं बालक नादान तेरा,
मेरे हाथों कोई भी अपकर्म न होने पाए।

दुनिया की है कठिन डगर मैं कैसे पार करूँगा,
बस मेरी विनती है जीवन सरिता बहती जाए।

दुनिया में आकर मेरा जीना सार्थक हो जाए,
परसेवा में जीवन बीते काम किसी के आए।

मुट्ठी बाँधे आए जग में खाली हाथ है जाना,
कब जीवन की शाम हो जाए कोई नहीं ठिकाना।

एक ही धारे पर चलती जाती है जीवन सरिता,
उम्र बीत जाती है मगर किनारा ही नहीं मिलता।

जीवन सरिता कभी भी ये मैली न होने पाए,
शुद्ध आत्मा को ईश्वर के दर्शन भी हो जाए।

हाथ में उसके डोरी है वो ही इसे चलाए,
जब तक वो चाहेगा जीवन सरिता बहती जाए॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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