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घर-परिवार एवं हमारा दायित्व- एक चिंतन

नमिता घोष
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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घर-परिवार स्पर्धा विशेष……

बचपन जीवन की मुख्य अवस्था है। इसे बहुत ही जतन और स्नेह की आवश्यकता होती है,लेकिन वर्तमान समय में बचपन की उम्र घटने लगी है। बचपन से ही बे-मेल विचारों की बाढ़ आने लगी है, अब बचपन से ही बच्चे असमय ही परिपक्व होने लगे हैं। बचपन पर यह बढ़ता संकट मानव व परिवार दोनों को प्रभावित कर रहा है। इसके लिए पारिवारिक परिवेश,पारिवारिक बंधन तथा वर्तमान शिक्षा पद्धति और आज की सूचना क्रांति बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
पारिवारिक परिवेश,परिवार का स्नेह पूर्ण एवं आत्मीय व्यवहार तथा बुद्धिमत्तापूर्ण सजग दृष्टि से उनमें समझदारी पैदा होती है। अगर इसमें किसी भी प्रकार से त्रुटि होगी तो बच्चा उद्दंड और नकारात्मक व्यवहार और भावना शून्य होकर अपराधी वृत्ति का हो जाएगा,पारिवारिक स्नेह और विश्वास से उन पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। आज की आपाधापी वाली जीवन-शैली से पारिवारिक समरसता एवं संवेदना में भारी कमी आई है। अभिभावकों की अति-व्यस्तता,एकल परिवारिक व्यवस्था से संयुक्त परिवार से दूरी और पारिवारिक विघटन इन सब बातों का बच्चों पर तीव्र शारीरिक एवं मानसिक अवनति का कारण बन रहा है। स्वभाव का चिड़चिड़ापन,उद्दंडता और मूड हावी होना चिंतनीय है।
बच्चों को इन समस्याओं से निकालने के लिए परिवार के अभिभावक उन्हें भावनात्मक साहस संबल प्रदान करें,जिससे उनमें आत्मविश्वास बढ़े। गलत एवं सही की समझ उनको दी जाए। अभिभावक सतर्क रहें,स्नेहिल रहें और उनके जीवन मूल्यों को समझें। यही सब बातें उन्हें अनुशासित,विकसित और उच्च चारित्रिक बातों से
सुसज्जित करेंगी और उनका जीवन उज्ज्वलता से परिपूर्ण होगा। हमें बच्चों को कभी भी डरा-धमका कर काम नहीं लेना चाहिए,बल्कि उनके साथ मित्रवत व्यवहार करें। उनके छोटे-छोटे कार्यों की सराहना करें तथा सकारात्मक आशावादी दृष्टिकोण प्रदान करें।
पारिवारिक कलह,अशांति द्वंद,झगड़े बच्चों के कोमल मन पर काफी दुष्प्रभाव डालते हैं। बच्चे वह नहीं सीखते,जो उन्हें ज्ञान और शिक्षा के उपदेश के रूप में दिया जाता है,बल्कि वह वही सीखते हैं जो देखते हैं। अतः ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ की अपेक्षा घर-परिवार के सदस्य आदर्श चरित्र अपनाएं। संयमित व्यवहार रखें,ताकि बच्चे को सही शिक्षा मिल सके। विशेष रूप से वे अपने माता-पिता का अनुसरण करते हैं। बच्चों के सामने माता-पिता झूठ ना बोलें,झगड़े ना करें,खराब या अपशब्दों का व्यवहार न करें। खुद अनुशासित रहें। सभी चीजों के कारण को समझाएं,तब ही घर या परिवार आदर्श के रूप में माना जाएगा।
बच्चों को बचपन से ही सिर्फ जीतने नहीं,बल्कि हारने की भी शिक्षा या ग्रहण करना व हार को ग्रहण करने का हौंसला भी देना चाहिए,तभी वह अति महत्वाकांक्षी नहीं बनेंगे एवं जीवन में कभी- कभी हार को भी स्वीकार करके उसे चुनौती मानकर फिर से जीवन में आगे बढ़ने का हौंसला कायम रख सकेंगे। कभी भी नकारात्मक शब्दों का उपयोग ना करें।
घर-परिवार का यह उत्तरदायित्व रहता है,कि प्यार-उत्साह की नदियां बहती रहें,आपसी समझौते से सभी समस्याओं का हल हो।

परिचय-नमिता घोष की शैक्षणिक योग्यता एम.ए.(अर्थशास्त्र),विशारद (संस्कृत)व बी.एड. है। २५ अगस्त को संसार में आई श्रीमती घोष की उपलब्धि सुदीर्घ समय से शिक्षकीय कार्य(शिक्षा विभाग)के साथ सामाजिक दायित्वों एवं लेखन कार्य में अपने को नियोजित करना है। इनकी कविताएं-लेख सतत प्रकाशित होते रहते हैं। बंगला,हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में भी प्रकाशित काव्य संकलन (आकाश मेरा लक्ष्य घर मेरा सत्य)काफी प्रशंसित रहे हैं। इसके लिए आपको विशेष सम्मान से सम्मानित किया गया,जबकि उल्लेखनीय सम्मान अकादमी अवार्ड (पश्चिम बंगाल),छत्तीसगढ़ बंगला अकादमी, मध्यप्रदेश बंगला अकादमी एवं अखिल भारतीय नाट्य उतसव में श्रेष्ठ अभिनय के लिए है। काव्य लेखन पर अनेक बार श्रेष्ठ सम्मान मिला है। कई सामाजिक साहित्यिक एवं संस्था के महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत नमिता घोष ‘राष्ट्र प्रेरणा अवार्ड- २०२०’ से भी विभूषित हुई हैं।

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