कुल पृष्ठ दर्शन : 220

मन का हवन

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
********************************************************

क्या-क्या आशाएं हैं मन में भीतर झाँको मनन करो,
स्वाहा का उच्चारण करके अपने मन का हवन करो।

क्या चाहत ईश्वर से तुमको,यह सोचो और चयन करो,
याद करो अपने मालिक को और बाद में शयन करो।

फंसा हुआ है तन-मन अपना मोह माया के चक्कर में,
अहंकार-लोभ-लालच सब अंतर्मन से दफन करो।

राह सत्य की चुन लो सारे अच्छे अच्छे कर्म करो,
जन्म दिया है परमेश्वर ने श्रद्धा से तुम नमन करो।

धर्म ग्रंथ अपने सारे जीवन जीना सिखलाते हैं,
शिक्षा लो उनसे जीवन की उनका पाठन-पठन करो।

उनके पाठन से ही सारे ज्ञान बुद्धि तुम पाओगे,
मानस पढ़ो,पढ़ो तुम गीता-ज्ञान नगीने खनन करो।

जीवन जीना सरल नहीं है,अपने खातिर क्या जीना,
औरों के आँसू पी जाओ,उनके दुःख का हनन करो।

जितने भी दुर्गुण तुमने अपने मन में भर रखे हैं,
पावन अग्नि से अपने मन की कालिख का हवन करो॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

Leave a Reply